SELECT MANDALA
SELECT SUKTA OF MANDALA 10
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Rigveda – Shakala Samhita – Mandala 10 Sukta 008
A
A+
९ त्रिशिरास्त्वाष्ट्रः। अग्निः,७-९ इन्द्रः। त्रिष्टुप्।
प्र के॒तुना॑ बृह॒ता या॑त्य॒ग्निरा रोद॑सी वृष॒भो रो॑रवीति ।
दि॒वश्चि॒दन्ताँ॑ उप॒माँ उदा॑नळ॒पामु॒पस्थे॑ महि॒षो व॑वर्ध ॥१॥
मु॒मोद॒ गर्भो॑ वृष॒भः क॒कुद्मा॑नस्रे॒मा व॒त्सः शिमी॑वाँ अरावीत् ।
स दे॒वता॒त्युद्य॑तानि कृ॒ण्वन्त्स्वेषु॒ क्षये॑षु प्रथ॒मो जि॑गाति ॥२॥
आ यो मू॒र्धानं॑ पि॒त्रोरर॑ब्ध॒ न्य॑ध्व॒रे द॑धिरे॒ सूरो॒ अर्ण॑: ।
अस्य॒ पत्म॒न्नरु॑षी॒रश्व॑बुध्ना ऋ॒तस्य॒ योनौ॑ त॒न्वो॑ जुषन्त ॥३॥
उ॒षउ॑षो॒ हि व॑सो॒ अग्र॒मेषि॒ त्वं य॒मयो॑रभवो वि॒भावा॑ ।
ऋ॒ताय॑ स॒प्त द॑धिषे प॒दानि॑ ज॒नय॑न्मि॒त्रं त॒न्वे॒३ स्वायै॑ ॥४॥
भुव॒श्चक्षु॑र्म॒ह ऋ॒तस्य॑ गो॒पा भुवो॒ वरु॑णो॒ यदृ॒ताय॒ वेषि॑ ।
भुवो॑ अ॒पां नपा॑ज्जातवेदो॒ भुवो॑ दू॒तो यस्य॑ ह॒व्यं जुजो॑षः ॥५॥
भुवो॑ य॒ज्ञस्य॒ रज॑सश्च ने॒ता यत्रा॑ नि॒युद्भि॒: सच॑से शि॒वाभि॑: ।
दि॒वि मू॒र्धानं॑ दधिषे स्व॒र्षां जि॒ह्वाम॑ग्ने चकृषे हव्य॒वाह॑म् ॥६॥
अ॒स्य त्रि॒तः क्रतु॑ना व॒व्रे अ॒न्तरि॒च्छन्धी॒तिं पि॒तुरेवै॒: पर॑स्य ।
स॒च॒स्यमा॑नः पि॒त्रोरु॒पस्थे॑ जा॒मि ब्रु॑वा॒ण आयु॑धानि वेति ॥७॥
स पित्र्या॒ण्यायु॑धानि वि॒द्वानिन्द्रे॑षित आ॒प्त्यो अ॒भ्य॑युध्यत् ।
त्रि॒शी॒र्षाणं॑ स॒प्तर॑श्मिं जघ॒न्वान्त्वा॒ष्ट्रस्य॑ चि॒न्निः स॑सृजे त्रि॒तो गाः ॥८॥
भूरीदिन्द्र॑ उ॒दिन॑क्षन्त॒मोजोऽवा॑भिन॒त्सत्प॑ति॒र्मन्य॑मानम् ।
त्वा॒ष्ट्रस्य॑ चिद्वि॒श्वरू॑पस्य॒ गोना॑माचक्रा॒णस्त्रीणि॑ शी॒र्षा परा॑ वर्क् ॥९॥
प्र के॒तुना॑ बृह॒ता या॑त्य॒ग्निरा रोद॑सी वृष॒भो रो॑रवीति ।
दि॒वश्चि॒दन्ताँ॑ उप॒माँ उदा॑नळ॒पामु॒पस्थे॑ महि॒षो व॑वर्ध ॥१॥
मु॒मोद॒ गर्भो॑ वृष॒भः क॒कुद्मा॑नस्रे॒मा व॒त्सः शिमी॑वाँ अरावीत् ।
स दे॒वता॒त्युद्य॑तानि कृ॒ण्वन्त्स्वेषु॒ क्षये॑षु प्रथ॒मो जि॑गाति ॥२॥
आ यो मू॒र्धानं॑ पि॒त्रोरर॑ब्ध॒ न्य॑ध्व॒रे द॑धिरे॒ सूरो॒ अर्ण॑: ।
अस्य॒ पत्म॒न्नरु॑षी॒रश्व॑बुध्ना ऋ॒तस्य॒ योनौ॑ त॒न्वो॑ जुषन्त ॥३॥
उ॒षउ॑षो॒ हि व॑सो॒ अग्र॒मेषि॒ त्वं य॒मयो॑रभवो वि॒भावा॑ ।
ऋ॒ताय॑ स॒प्त द॑धिषे प॒दानि॑ ज॒नय॑न्मि॒त्रं त॒न्वे॒३ स्वायै॑ ॥४॥
भुव॒श्चक्षु॑र्म॒ह ऋ॒तस्य॑ गो॒पा भुवो॒ वरु॑णो॒ यदृ॒ताय॒ वेषि॑ ।
भुवो॑ अ॒पां नपा॑ज्जातवेदो॒ भुवो॑ दू॒तो यस्य॑ ह॒व्यं जुजो॑षः ॥५॥
भुवो॑ य॒ज्ञस्य॒ रज॑सश्च ने॒ता यत्रा॑ नि॒युद्भि॒: सच॑से शि॒वाभि॑: ।
दि॒वि मू॒र्धानं॑ दधिषे स्व॒र्षां जि॒ह्वाम॑ग्ने चकृषे हव्य॒वाह॑म् ॥६॥
अ॒स्य त्रि॒तः क्रतु॑ना व॒व्रे अ॒न्तरि॒च्छन्धी॒तिं पि॒तुरेवै॒: पर॑स्य ।
स॒च॒स्यमा॑नः पि॒त्रोरु॒पस्थे॑ जा॒मि ब्रु॑वा॒ण आयु॑धानि वेति ॥७॥
स पित्र्या॒ण्यायु॑धानि वि॒द्वानिन्द्रे॑षित आ॒प्त्यो अ॒भ्य॑युध्यत् ।
त्रि॒शी॒र्षाणं॑ स॒प्तर॑श्मिं जघ॒न्वान्त्वा॒ष्ट्रस्य॑ चि॒न्निः स॑सृजे त्रि॒तो गाः ॥८॥
भूरीदिन्द्र॑ उ॒दिन॑क्षन्त॒मोजोऽवा॑भिन॒त्सत्प॑ति॒र्मन्य॑मानम् ।
त्वा॒ष्ट्रस्य॑ चिद्वि॒श्वरू॑पस्य॒ गोना॑माचक्रा॒णस्त्रीणि॑ शी॒र्षा परा॑ वर्क् ॥९॥