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Atharvaveda Shaunaka Samhita – Kanda 20 Sukta 128
By Dr. Sachchidanand Pathak, U.P. Sanskrit Sansthan, Lucknow, India.
खिलानि ।
यः स॒भेयो॑ विद॒थ्यः सु॒त्वा य॒ज्वाथ॒ पूरु॑षः ।
सूर्यं॒ चामू॑ रि॒शादस॒स्तद् दे॒वाः प्राग॑कल्पयन्॥१॥
यो जा॒म्या अप्र॑थय॒स्तद् यत् सखा॑यं॒ दुधू॑र्षति ।
ज्येष्ठो॒ यद॑प्रचेता॒स्तदा॑हु॒रध॑रा॒गिति॑ ॥२॥
यद् भ॒द्रस्य॒ पुरु॑षस्य पु॒त्रो भ॑वति दाधृ॒षिः ।
तद् वि॒प्रो अब्र॑वीदु॒ तद् ग॑न्ध॒र्वः काम्यं॒ वचः॑ ॥३॥
यश्च॑ प॒णि रघु॑जि॒ष्ठ्यो यश्च॑ दे॒वां अदा॑शुरिः ।
धीरा॑णां॒ शश्व॑ताम॒हं तद॑पा॒गिति॑ शुश्रुम ॥४॥
ये च॑ दे॒वा अय॑ज॒न्ताथो॒ ये च॑ पराद॒दिः ।
सूर्यो॒ दिव॑मिव ग॒त्वाय॑ म॒घवा॑ नो॒ वि र॑प्शते ॥५॥
योना॒क्ताक्षो॑ अनभ्य॒क्तो अम॑णि॒वो अहि॑र॒ण्यवः॑ ।
अब्र॑ह्मा॒ ब्रह्म॑णः पु॒त्रस्तो॒ता कल्पे॑षु सं॒मिता॑ ॥६॥
य आ॒क्ताक्षः॑ सुभ्य॒क्तः सुम॑णिः॒ सुहि॑र॒ण्यवः॑ ।
सुब्र॑ह्मा॒ ब्रह्म॑णः पु॒त्रस्तो॒ता कल्पे॑षु सं॒मिता॑ ॥७॥
अप्र॑पा॒णा च॑ वेश॒न्ता रे॒वां अप्रति॑दिश्ययः ।
अय॑भ्या क॒न्या कल्या॒णी तो॒ता कल्पे॑षु सं॒मिता॑ ॥८॥
सुप्र॑पा॒णा च॑ वेश॒न्ता रे॒वान्त्सुप्रति॑दिश्ययः ।
सुय॑भ्या क॒न्या कल्या॒णी तो॒ता कल्पे॑षु सं॒मिता॑ ॥९॥
परि॑वृ॒क्ता च॒ महि॑षी स्व॒स्त्या च यु॒धिंग॒मः ।
अना॑शुर॑श्चाया॒मी तो॒ता कल्पे॑षु सं॒मिता॑ ॥१०॥
वा॒वा॒ता च॒ महि॑षी स्व॒स्त्या च यु॒धिंग॒मः ।
श्वा॒शुर॑श्चाया॒मी तो॒ता कल्पे॑षु सं॒मिता॑ ॥११॥
यदि॑न्द्रा॒दो दा॑शरा॒ज्ञे मानु॑षं॒ वि गा॑हथाः ।
विरू॑पः॒ सर्व॑स्मा आसीत् सह य॒क्षाय॒ कल्प॑ते ॥१२॥
त्वं वृ॑षा॒क्षुं म॑घव॒न्नम्रं॑ म॒र्याकरो॒ रविः॑ ।
त्वं रौ॑हि॒णं व्यास्यो॒ वि वृ॒त्रस्याभि॑न॒च्छिरः॑ ॥१३॥
यः पर्व॑ता॒न् व्य॑दधा॒द् यो अ॒पो व्य॑गाहथाः ।
इन्द्रो॒ यो वृ॑त्र॒हान्म॒हं तस्मा॑दिन्द्र॒ नमो॑ऽस्तु ते ॥१४॥
पृ॒ष्ठं धाव॑न्तं ह॒र्योरौच्चैः॑ श्रव॒सम॑ब्रुवन्।
स्व॒स्त्यश्व॒ जैत्रा॒येन्द्र॒मा व॑ह सु॒स्र॑म्॥१५॥
ये त्वा॑ श्वे॒ता अजै॑श्रव॒सो हार्यो॑ युञ्जन्ति॒ दक्षि॑णम्।
पूर्वा॒ नम॑स्य दे॒वानां॒ बिभ्र॑दिन्द्र महीयते ॥१६॥