SELECT KANDA
SELECT SUKTA OF KANDA 20
- 001
- 002
- 003
- 004
- 005
- 006
- 007
- 008
- 009
- 010
- 011
- 012
- 013
- 014
- 015
- 016
- 017
- 018
- 019
- 020
- 021
- 022
- 023
- 024
- 025
- 026
- 027
- 028
- 029
- 030
- 031
- 032
- 033
- 034
- 035
- 036
- 037
- 038
- 039
- 040
- 041
- 042
- 043
- 044
- 045
- 046
- 047
- 048
- 049
- 050
- 051
- 052
- 053
- 054
- 055
- 056
- 057
- 058
- 059
- 060
- 061
- 062
- 063
- 064
- 065
- 066
- 067
- 068
- 069
- 070
- 071
- 072
- 073
- 074
- 075
- 076
- 077
- 078
- 079
- 080
- 081
- 082
- 083
- 084
- 085
- 086
- 087
- 088
- 089
- 090
- 091
- 092
- 093
- 094
- 095
- 096
- 097
- 098
- 099
- 100
- 101
- 102
- 103
- 104
- 105
- 106
- 107
- 108
- 109
- 110
- 111
- 112
- 113
- 114
- 115
- 116
- 117
- 118
- 119
- 120
- 121
- 122
- 123
- 124
- 125
- 126
- 127
- 128
- 129
- 130
- 131
- 132
- 133
- 134
- 135
- 136
- 137
- 138
- 139
- 140
- 141
- 142
- 143
Atharvaveda Shaunaka Samhita – Kanda 20 Sukta 067
By Dr. Sachchidanand Pathak, U.P. Sanskrit Sansthan, Lucknow, India.
सव॒नोति॒ हि सु॒न्वन् क्षयं॒ परी॑णसः सुन्वा॒नो हि ष्मा॒ यज॒त्यव॒ द्विषो॑ दे॒वाना॒मव॒ द्विषः॑ ।
सु॒न्वा॒न इत् सि॑षासति स॒हस्रा॑ वा॒ज्यवृ॑तः ।
सु॒न्वा॒नायेन्द्रो॑ ददात्या॒भुवं॑ र॒यिं द॑दात्या॒भुव॑म्॥१॥
मो षु वो॑ अ॒स्मद॒भि तानि॒ पौंस्या॒ सना॑ भूवन् द्यु॒म्नानि॒ मोत जा॑रिषुर॒स्मत् पु॒रोत जा॑रिषुः ।
यद् व॑श्चि॒त्रं यु॒गेयु॑गे॒ नव्यं॒ घोषा॒दम॑र्त्यम्।
अ॒स्मासु॒ तन्म॑रुतो॒ यच्च॑ दु॒ष्टृरं॑ दिधृ॒ता यच्च॑ दु॒ष्टर॑म्॥२॥
अ॒ग्निं होता॑रं मन्ये॒ दास्व॑न्तं॒ वसुं॑ सू॒नुं सह॑सो जा॒तवे॑दसं॒ विप्रं॒ न जा॒तवे॑दसम्।
य ऊ॒र्ध्वया॑ स्वध्व॒रो दे॒वो दे॒वाच्या॑ कृ॒पा।
घृ॒तस्य॒ विभ्रा॑ष्टि॒मनु॑ वष्टि शो॒चिषा॒जुह्वा॑नस्य स॒र्पिषः॑ ॥३॥
य॒ज्ञैः समि॑श्लाः॒ पृष॑तीभिरृ॒ष्टिभि॒र्यामं॑ छु॒भ्रासो॑ अ॒ञ्जिषु॑ प्रि॒या उ॒त।
आ॒सद्या॑ ब॒र्हिर्भ॑रतस्य सूनवः पो॒त्रादा सोमं॑ पिबता दिवो नरः ॥४॥
आ व॑क्षि दे॒वां इ॒ह वि॑प्र॒ यक्षि॑ चो॒शन् हो॑त॒र्नि ष॑दा॒ योनि॑षु त्रि॒षु।
प्रति॑ वीहि॒ प्रस्थि॑तं सो॒म्यं मधु॒ पिबाग्नी॑ध्रा॒त् तव॑ भा॒गस्य॑ तृष्णुहि ॥५॥
ए॒ष स्य ते॑ त॒न्वो नृम्ण॒वर्ध॑नः॒ सह॒ ओजः॑ प्र॒दिवि॑ बा॒ह्वोर्हि॒तः ।
तुभ्यं॑ सु॒तो म॑घवन् तुभ्य॒माभृ॑त॒स्त्वम॑स्य॒ ब्राह्म॑णा॒दा तृ॒पत् पि॑ब ॥६॥
यमु॒ पूर्वमहु॑वे॒ तमि॒दं हु॑वे॒ सेदु॒ हव्यो॑ द॒दिर्यो नाम॒ पत्य॑ते ।
अ॒ध्व॒र्युभिः॒ प्रस्थि॑तं सो॒म्यं मधु॑ पो॒त्रात् सोमं॑ द्रविणोदः॒ पिब॑ ऋ॒तुभिः॑ ॥७॥