Atharvaveda Shaunaka Samhita – Kanda 20 Sukta 097

By Dr. Sachchidanand Pathak, U.P. Sanskrit Sansthan, Lucknow, India.

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व॒यमे॑नमि॒दा ह्योपी॑पेमे॒ह व॒ज्रिण॑म्।
तस्मा॑ उ अ॒द्य स॑म॒ना सु॒तं भ॒रा नू॒नं भू॑षत श्रु॒ते॥१॥
वृक॑श्चिदस्य वार॒ण उ॑रा॒मथि॒रा व॒युने॑षु भूषति ।
सेमं नः॒ स्तोमं॑ जुजुषा॒ण आ ग॒हीन्द्र॒ प्र चि॒त्रया॑ धि॒या॥२॥
कदू॒ न्व॑१स्याकृ॑त॒मिन्द्र॑स्यास्ति॒ पौंस्य॑म्।
केनो॒ नु कं॒ श्रोम॑तेन॒ न शु॑श्रुवे ज॒नुषः॒ परि॑ वृत्र॒हा॥३॥