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Atharvaveda Shaunaka Samhita – Kanda 20 Sukta 069
By Dr. Sachchidanand Pathak, U.P. Sanskrit Sansthan, Lucknow, India.
स घा॑ नो॒ योग॒ आ भु॑व॒त् स रा॒ये स पुरं॑ध्याम्। गम॒द् वाजे॑भि॒रा स नः॑ ॥१॥
यस्य॑ सं॒स्थे न वृ॒ण्वते॒ हरी॑ स॒मत्सु॒ शत्र॑वः । तस्मा॒ इन्द्रा॑य गायत ॥२॥
सु॒त॒पाव्ने॑ सु॒ता इ॒मे शुच॑यो यन्ति वी॒तये॑ । सोमा॑सो॒ दध्या॑शिरः ॥३॥
त्वं सु॒तस्य॑ पी॒तये॑ स॒द्यो वृ॒द्धो अ॑जायथाः । इन्द्र॒ ज्यैष्ठ्या॑य सुक्रतो ॥४॥
आ त्वा॑ विशन्त्वा॒शवः॒ सोमा॑स इन्द्र गिर्वणः । शं ते॑ सन्तु॒ प्रचे॑तसे ॥५॥
त्वां स्तोमा॑ अवीवृध॒न् त्वामु॒क्था श॑तक्रतो । त्वां व॑र्धन्तु नो॒ गिरः॑ ॥६॥
अक्षि॑तोतिः सनेदि॒मं वाज॒मिन्द्रः॑ सह॒स्रिण॑म्। यस्मि॒न् विश्वा॑नि॒ पौंस्या॑ ॥७॥
मा नो॒ मर्ता॑ अ॒भि द्रु॑हन् त॒नूना॑मिन्द्र गिर्वणः । ईशा॑नो यवया व॒धम्॥८॥
यु॒ञ्जन्ति॑ ब्र॒ध्नम॑रु॒षं चर॑न्तं॒ परि॑ त॒स्थुषः॑ । रोच॑न्ते रोच॒ना दि॒वि॥९॥
यु॒ञ्जन्त्य॑स्य॒ काम्या॒ हरी॒ विप॑क्षसा॒ रथे॑ । शोणा॑ धृ॒ष्णू नृ॒वाह॑सा ॥१०॥
के॒तुं कृ॒ण्वन्न॑के॒तवे॒ पेशो॑ मर्या अपे॒शसे॑ । समु॒षद्भि॑रजायथाः ॥११॥
आदह॑ स्व॒धामनु॒ पुन॑र्गर्भ॒त्वमे॑रि॒रे। दधा॑ना॒ नाम॑ य॒ज्ञिय॑म्॥१२॥