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Atharvaveda Shaunaka Samhita – Kanda 20 Sukta 127
By Dr. Sachchidanand Pathak, U.P. Sanskrit Sansthan, Lucknow, India.
॥ अथ कुन्तापसूक्तानि ॥
खिलानि ।
इ॒दं जना॒ उप॑ श्रुत॒ नरा॒शंस॒ स्तवि॑ष्यते ।
ष॒ष्टिं स॒हस्रा॑ नव॒तिं च॑ कौरम॒ आ रु॒शमे॑षु दद्महे ॥१॥
उष्ट्रा॒ यस्य॑ प्रवा॒हणो॑ व॒धूम॑न्तो द्वि॒र्दश॑ ।
व॒र्ष्मा रथ॑स्य॒ नि जि॑हीडते दि॒व ई॒षमा॑णा उप॒स्पृशः॑ ॥२॥
ए॒ष इ॒षाय॑ मामहे श॒तं नि॒ष्कान् दश॒ स्रजः॑ ।
त्रीणि॑ श॒तान्यर्व॑तां स॒हस्रा॒ दश॒ गोना॑म्॥३॥
वच्य॑स्व रेभ॑ वच्यस्व वृ॒क्षे न प॒क्वे श॒कुनः॑ ।
नष्टे॑ जि॒ह्वा च॑र्चरीति क्षु॒रो न भु॒रिजो॑रिव ॥४॥
प्र रे॒भासो॑ मनी॒षा वृषा॒ गाव॑ इवेरते ।
अ॒मो॒त॒पुत्र॑का ए॒षाम॒मोत॑ गा॒ इवा॑सते ॥५॥
प्र रे॑भ॒ धीं भ॑रस्व गो॒विदं॑ वसु॒विद॑म्।
दे॒व॒त्रेमां वाचं॑ स्रीणी॒हीषु॒र्नावी॑र॒स्तार॑म्॥६॥
राज्ञो॑ विश्व॒जनी॑नस्य॒ यो दे॒वोऽमर्त्यां॒ अति॑ ।
वै॒श्वा॒न॒रस्य॒ सुष्टु॑ति॒मा सु॒नोता॑ परि॒क्षितः॑ ॥७॥
प॒रि॒च्छिन्नः॒ क्षेम॑मकरो॒त् तम॒ आस॑नमा॒चर॑न्।
कुला॑यन् कृ॒ण्वन् कौर॑व्यः॒ पति॒र्वद॑ति जा॒यया॑ ॥८॥
क॒त॒रत् त॒ आ ह॑राणि॒ दधि॒ मन्थां॑ परि॒ श्रुत॑म्।
जा॒याः पतिं॒ वि पृ॑च्छति रा॒ष्ट्रे राज्ञः॑ परि॒क्षितः॑ ॥९॥
अ॒भीवस्वः॒ प्र जि॑हीते॒ यवः॑ प॒क्वः प॒थो बिल॑म्।
जनः॒ स भ॒द्रमेध॑ति रा॒ष्ट्रे राज्ञः॑ परि॒क्षितः॑ ॥१०॥
इन्द्रः॑ का॒रुम॑बूबुध॒दुत्ति॑ष्ठ॒ वि च॑रा॒ जन॑म्।
ममेदु॒ग्रस्य॒ चर्कृ॑धि॒ सर्व॒ इत् ते॑ पृणाद॒रिः ॥११॥
इ॒ह गावः॒ प्रजा॑यध्वमि॒हाश्वा इ॒ह पूरु॑षाः ।
इ॒हो स॒हस्र॑दक्षि॒णोऽपि॑ पू॒षा नि षी॑दति ॥१२॥
नेमा इ॑न्द्र॒ गावो॑ रिष॒न् मो आ॒सां गोप॑ रीरिषत्।
मासा॑म॒मित्र॒युर्जन॒ इन्द्र॒ मा स्ते॒न ई॑शत ॥१३॥
उप॑ नो न रमसि॒ सूक्ते॑न॒ वच॑सा व॒यं भ॒द्रेण॒ वच॑सा व॒यम्।
वना॑दधिध्व॒नो गि॒रो न रि॑ष्येम क॒दा च॒न॥१४॥