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Atharvaveda Shaunaka Samhita – Kanda 20 Sukta 023
By Dr. Sachchidanand Pathak, U.P. Sanskrit Sansthan, Lucknow, India.
१-९ विश्वामित्रः। इन्द्रः। गायत्री।
आ तू न॑ इन्द्र म॒द्र्यऽग्घुवा॒नः सोम॑पीतये । हरि॑भ्यां याह्यद्रिवः ॥१॥
स॒त्तो होता॑ न ऋ॒त्विय॑स्तिस्ति॒रे ब॒र्हिरा॑नु॒षक्। अयु॑ज्रन् प्रा॒तरद्र॑यः ॥२॥
इ॒मा ब्रह्म॑ ब्रह्मवाहः क्रि॒यन्त॒ आ ब॒र्हिः सी॑द । वी॒हि शू॑र पुरो॒लाश॑म्॥३॥
रा॒र॒न्धि सव॑नेषु ण ए॒षु स्तोमे॑षु वृत्रहन्। उ॒क्थेष्वि॑न्द्र गिर्वणः ॥४॥
म॒तयः॑ सोम॒पामु॒रुं रि॒हन्ति॒ शव॑स॒स्पति॑म्। इन्द्रं॑ व॒त्सं न मा॒तरः॑ ॥५॥
स म॑न्दस्वा॒ ह्यन्ध॑सो॒ राध॑से त॒न्वा म॒हे। न स्तो॒तारं॑ नि॒दे क॑रः ॥६॥
व॒यमि॑न्द्र त्वा॒यवो॑ ह॒विष्म॑न्तो जरामहे । उ॒त त्वम॑स्म॒युर्व॑सो ॥७॥
मारे अ॒स्मद् वि मु॑मुचो॒ हरि॑प्रिया॒र्वाङ् या॑हि । इन्द्र॑ स्वधावो॒ मत्स्वे॒ह॥८॥
अ॒र्वाञ्चं॑ त्वा सु॒खे रथे॒ वह॑तामिन्द्र के॒शिना॑ । घृ॒तस्नू॑ ब॒र्हिरा॒सदे॑ ॥९॥