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Atharvaveda Shaunaka Samhita – Kanda 20 Sukta 118
By Dr. Sachchidanand Pathak, U.P. Sanskrit Sansthan, Lucknow, India.
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श॒ग्ध्यू॒३षु श॑चीपत॒ इन्द्र॒ विश्वा॑भिरू॒तिभिः॑ ।
भगं॒ न हि त्वा॑ य॒शसं॑ वसु॒विद॒मनु॑ शूर॒ चरा॑मसि ॥१॥
पौ॒रो अश्व॑स्य पुरु॒कृद् गवा॑म॒स्युत्सो॑ देव हिर॒ण्ययः॑ ।
नकि॒र्हि दानं॑ परि॒मर्धि॑ष॒त् त्वे यद्य॒द्यामि॒ तदा भ॑र ॥२॥
इन्द्र॒मिद् दे॒वता॑तय॒ इन्द्रं॑ प्रय॒त्यऽध्व॒रे।
इन्द्रं॑ समी॒के व॒निनो॑ हवामह॒ इन्द्रं॒ धन॑स्य सा॒तये॑ ॥३॥
इन्द्रो॑ म॒ह्ना रोद॑सी पप्रथ॒च्छव॒ इन्द्रः॒ सूर्य॑मरोचयत्।
इन्द्रे॑ ह॒ विश्वा॒ भुव॑नानि येमिर॒ इन्द्रे॑ सुवा॒नास॒ इन्द॑वः ॥४॥