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Atharvaveda Shaunaka Samhita – Kanda 20 Sukta 094
By Dr. Sachchidanand Pathak, U.P. Sanskrit Sansthan, Lucknow, India.
आ या॒त्विन्द्रः॒ स्वप॑ति॒र्मदा॑य॒ यो धर्म॑णा तूतुजा॒नस्तुवि॑ष्मान्।
प्र॒त्व॒क्षा॒णो अति॒ विश्वा॒ सहां॑स्यपा॒रेण॑ मह॒ता वृष्ण्ये॑न ॥१॥
सु॒ष्ठामा॒ रथः॑ सु॒यमा॒ हरी॑ ते मि॒म्यक्ष॒ वज्रो॑ नृप॑ते॒ गभ॑स्तौ ।
शीभं॑ राजन् सु॒पथा या॑ह्य॒र्वाङ् वर्धा॑म ते प॒पुषो॒ वृष्ण्या॑नि ॥२॥
एन्द्र॒वाहो॑ नृ॒पतिं॒ वज्र॑बाहुमु॒ग्रमु॒ग्रास॑स्तवि॒षास॑ एनम्।
प्रत्व॑क्षसं वृष॒भं स॒त्यशु॑ष्म॒मेम॑स्म॒त्रा स॑ध॒मादो॑ वहन्तु ॥३॥
ए॒वा पतिं॑ द्रोण॒साचं॒ सचे॑तसमू॒र्ज स्क॒म्भं ध॒रुण॒ आ वृ॑षायसे ।
ओजः॑ कृष्व॒ सं गृ॑भाय॒ त्वे अप्यसो॒ यथा॑ केनि॒पाना॑मि॒नो वृ॒धे॥४॥
गम॑न्न॒स्मे वसू॒न्या हि शंसि॑षं स्वा॒शिषं॒ भर॒मा या॑हि सो॒मिनः॑ ।
त्वमी॑शिषे॒ सास्मिन्ना स॑त्सि ब॒र्हिष्य॑नाधृ॒ष्या तव॒ पात्रा॑णि॒ धर्म॑णा ॥५॥
पृथ॒क् प्राय॑न् प्रथ॒मा दे॒वहू॑त॒योऽकृ॑ण्वत श्रव॒स्याऽनि दु॒ष्टरा॑ ।
न ये शे॒कुर्य॒ज्ञियां॒ नाव॑मा॒रुह॑मी॒र्मैव ते न्य॑विशन्त॒ केप॑यः ॥६॥
ए॒वैवापा॒गप॑रे सन्तु दू॒ढ्योऽश्वा॒ येषां॑ दु॒र्युज॑ आयुयु॒ज्रे।
इ॒त्था ये प्रागुप॑रे॒ सन्ति॑ दा॒वने॑ पु॒रूणि॒ यत्र॑ व॒युना॑नि॒ भोज॑ना ॥७॥
गि॒रींरज्रा॒न् रेज॑मानां अधारय॒द् द्यौः क्र॑न्दद॒न्तरि॑क्षाणि कोपयत्।
स॒मी॒ची॒ने धि॒षणे॒ वि ष्क॑भायति॒ वृष्णः॑ पी॒त्वा मद॑ उ॒क्थानि॑ शंसति ॥८॥
इ॒मं बि॑भर्मि॒ सुकृ॑तं ते अङ्कु॒शं येना॑रु॒जासि॑ मघवं छफा॒रुजः॑ ।
अ॒स्मिन्त्सु ते॒ सव॑ने अस्त्वो॒क्त्यं सु॒त इ॒ष्टौ म॑घवन् बो॒ध्याभ॑गः ॥९॥
गोभि॑ष्टरे॒माम॑तिं दु॒रेवां॒ यवे॑न॒ क्षुधं॑ पुरुहूत॒ विश्वा॑म्।
व॒यं राज॑भिः प्रथ॒मा धना॑न्य॒स्माके॑न वृ॒जने॑ना जयेम ॥१०॥
बृह॒स्पति॑र्नः॒ परि॑ पातु प॒श्चादु॒तोत्त॑रस्मा॒दध॑रादघा॒योः ।
इन्द्रः॑ पु॒रस्ता॑दु॒त म॑ध्य॒तो नः॒ सखा॒ सखि॑भ्यो॒ वरि॑वः कृणोतु ॥११॥