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Atharvaveda Shaunaka Samhita – Kanda 20 Sukta 090
By Dr. Sachchidanand Pathak, U.P. Sanskrit Sansthan, Lucknow, India.
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यो अ॑द्रि॒भित् प्र॑थम॒जा ऋ॒तावा॒ बृह॒स्पति॑राङ्गिर॒सो ह॒विष्मा॑न्।
द्वि॒बर्ह॑ज्मा प्राघर्म॒सत् पि॒ता न॒ आ रोद॑सी वृष॒भो रो॑रवीति ॥१॥
जना॑य चि॒द् य ईव॑ते उ लो॒कं बृह॒स्पति॑र्दे॒वहू॑तौ च॒कार॑ ।
घ्नन् वृ॒त्राणि॒ वि पुरो॑ दर्दरीति॒ जयं॒ छत्रूं॑र॒मित्रा॑न् पृ॒त्सु साह॑न्॥२॥
बृह॒स्पतिः॒ सम॑जय॒द् वसू॑नि म॒हो व्र॒जान् गोम॑तो दे॒व ए॒षः ।
अ॒पः सिषा॑स॒न्त्स्व॑१रप्र॑तीतो॒ बृह॒स्पति॒र्हन्त्य॒मित्र॑म॒र्कैः ॥३॥