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Atharvaveda Shaunaka Samhita – Kanda 07 Sukta 097
By Dr. Sachchidanand Pathak, U.P. Sanskrit Sansthan, Lucknow, India.
यज्ञः
१-५ अथर्वा। इन्द्राग्नी।त्रिष्टुप्, ५ त्रिपदार्षी भुरिग्गायत्री, ६ त्रिपदा प्राजापत्या बृहती,
७ त्रिपदा साम्नी भुरिग्जगती, ८ उपरिष्टाद्बृहती।
यद॒द्य त्वा॑ प्रय॒ति य॒ज्ञे अ॒स्मिन् होत॑श्चिकित्व॒न्नवृ॑णीमही॒ह।
ध्रु॒वम॑यो ध्रु॒वमु॒ता श॑विष्ठ प्रवि॒द्वान् य॒ज्ञमुप॑ याहि॒ सोम॑म्॥१॥
समि॑न्द्र नो॒ मन॑सा नेष॒ गोभिः॒ सं सू॒रिभि॑र्हरिव॒न्त्सं स्व॒स्त्या।
सं ब्रह्म॑णा दे॒वहि॑तं॒ यदस्ति॒ सं दे॒वानां॑ सुम॒तौ य॒ज्ञिया॑नाम्॥२॥
यानाव॑ह उश॒तो दे॑व दे॒वांस्तान् प्रेर॑य॒ स्वे अ॑ग्ने स॒धस्थे॑ ।
ज॒क्षि॒वांसः॑ पपि॒वांसो॒ मधू॑न्य॒स्मै ध॑त्त वसवो॒ वसू॑नि ॥३॥
सु॒गा वो॑ देवाः॒ सद॑ना अकर्म॒ य आ॑ज॒ग्म सव॑ने मा जुषा॒णाः ।
वह॑माना॒ भर॑माणाः॒ स्वा वसू॑नि॒ वसुं॑ घ॒र्मं दिव॒मा रो॑ह॒तानु॑ ॥४॥
यज्ञ॑ य॒ज्ञं ग॑च्छ य॒ज्ञप॑तिं गच्छ ।
स्वां योनिं॑ गच्छ॒ स्वाहा॑ ॥५॥
ए॒ष ते॑ य॒ज्ञो य॑ज्ञपते स॒हसू॑क्तवाकः ।
सु॒वीर्यः॒ स्वाहा॑ ॥६॥
वष॑ड् ढु॒तेभ्यो॒ वष॒डहु॑तेभ्यः ।
देवा॑ गातुविदो गा॒तुं वि॒त्त्वा गा॒तुमि॑त ॥७॥
मन॑सस्पत इ॒मं नो॑ दि॒वि दे॒वेषु॑ य॒ज्ञम्।
स्वाहा॑ दि॒वि स्वाहा॑ पृथि॒व्यां स्वाहा॒न्तरि॑क्षे॒ स्वाहा॒ वाते॑ धां॒ स्वाहा॑ ॥८॥