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Atharvaveda Shaunaka Samhita – Kanda 07 Sukta 089
By Dr. Sachchidanand Pathak, U.P. Sanskrit Sansthan, Lucknow, India.
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दिव्या आपः।
१-४ सिन्धुद्वीपः। अग्निः। अनुष्टुप्, ४ त्रिपदा निचृत् परोष्णिक्।
अ॒पो दि॒व्या अ॑चायिषं॒ रसे॑न॒ सम॑पृक्ष्महि ।
पय॑स्वानग्न॒ आग॑मं॒ तं मा॒ सं सृ॑ज॒ वर्च॑सा ॥१॥
सं मा॑ग्ने॒ वर्च॑सा सृज॒ सं प्र॒जया॒ समायु॑षा ।
वि॒द्युर्मे॑ अ॒स्य दे॒वा इन्द्रो॑ विद्यात् सह ऋषि॑भिः ॥२॥
इ॒दमा॑पः॒ प्र व॑हताव॒द्यं च॒ मलं॑ च॒ यत्।
यच्चा॑भिदु॒द्रोहानृ॑तं॒ यच्च॑ शे॒पे अ॒भीरु॑णम्॥३॥
एधो॑ऽस्येधिषी॒य स॒मिद॑सि॒ समे॑धिषीय ।
तेजो॑ऽसि॒ तेजो॒ मयि॑ धेहि ॥४॥