SELECT KANDA
SELECT SUKTA OF KANDA 7
- 001
- 002
- 003
- 004
- 005
- 006
- 007
- 008
- 009
- 010
- 011
- 012
- 013
- 014
- 015
- 016
- 017
- 018
- 019
- 020
- 021
- 022
- 023
- 024
- 025
- 026
- 027
- 028
- 029
- 030
- 031
- 032
- 033
- 034
- 035
- 036
- 037
- 038
- 039
- 040
- 041
- 042
- 043
- 044
- 045
- 046
- 047
- 048
- 049
- 050
- 051
- 052
- 053
- 054
- 055
- 056
- 057
- 058
- 059
- 060
- 061
- 062
- 063
- 064
- 065
- 066
- 067
- 068
- 069
- 070
- 071
- 072
- 073
- 074
- 075
- 076
- 077
- 078
- 079
- 080
- 081
- 082
- 083
- 084
- 085
- 086
- 087
- 088
- 089
- 090
- 091
- 092
- 093
- 094
- 095
- 096
- 097
- 098
- 099
- 100
- 101
- 102
- 103
- 104
- 105
- 106
- 107
- 108
- 109
- 110
- 111
- 112
- 113
- 114
- 115
- 116
- 117
- 118
Atharvaveda Shaunaka Samhita – Kanda 07 Sukta 090
By Dr. Sachchidanand Pathak, U.P. Sanskrit Sansthan, Lucknow, India.
A
A+
शत्रुबलनाशनम्।
१-३ अङ्गिराः। मन्त्रोक्ताः। १ गायत्री, २ विराट् पुरस्ताद् बृहती,
अपि॑ वृश्च पुराण॒वद् व्र॒तते॑रिव गुष्पि॒तम्।
ओजो॑ दा॒स्यस्य॑ दम्भय ॥१॥
व॒यं तद॑स्य॒ सम्भृ॑तं॒ वस्विन्द्रे॑ण॒ वि भ॑जामहै ।
म्ला॒पया॑मि भ्र॒जः शि॒भ्रं वरु॑णस्य व्र॒तेन॑ ते ॥२॥
यथा॒ शेपो॑ अ॒पाया॑तै स्त्री॒षु चास॒दना॑वयाः ।
अ॒व॒स्थस्य॑ क्न॒दीव॑तः शाङ्-कु॒रस्य॑ नितो॒दिनः॑ ।
यदात॑त॒मव॒ तत् त॑नु॒ यदुत्त॑तं॒ नि तत् त॑नु ॥३॥