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Atharvaveda Shaunaka Samhita – Kanda 07 Sukta 070
By Dr. Sachchidanand Pathak, U.P. Sanskrit Sansthan, Lucknow, India.
शत्रुदमनम्।
१-५ अथर्वा। श्येनः, देवाः। १ त्रिष्टुप्, २ अतिजगतीगर्भा जगती, ३-५ अनुष्टुप् (३ पुरःककुम्मती)।
यत् किं चा॒सौ मन॑सा॒ यच्च॑ वा॒चा य॒ज्ञैर्जु॒होति॑ ह॒विषा॒ यजु॑षा ।
तन्मृ॒त्युना॒ निरृ॑तिः संविदा॒ना पु॒रा स॒त्यादाहु॑तिं हन्त्वस्य ॥१॥
या॒तु॒धाना॒ निरृ॑ति॒रादु॒ रक्ष॒स्ते अ॑स्य घ्न॒न्त्वनृ॑तेन स॒त्यम्।
इन्द्रे॑षिता दे॒वा आज्य॑मस्य मथ्नन्तु॒ मा तत् सं पा॑दि॒ यद॒सौ जु॒होति॑ ॥२॥
अ॒जि॒रा॒धि॒रा॒जौ श्ये॒नौ सं॑पा॒तिना॑विव ।
आज्यं॑ पृतन्य॒तो ह॑तां॒ यो नः॒ कश्चा॑भ्यघा॒यति॑ ॥३॥
अपा॑ञ्चौ त उ॒भौ बा॒हू अपि॑ नह्याम्या॒स्यऽम्।
अ॒ग्नेर्दे॒वस्य॑ म॒न्युना॒ तेन॑ तेऽवधिषं ह॒विः ॥४॥
अपि॑ नह्यामि ते बा॒हू अपि॑ नह्याम्या॒स्यऽम्।
अ॒ग्नेर्घो॒रस्य॑ म॒न्युना॒ तेन॑ तेऽवधिषं ह॒विः ॥५॥