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Atharvaveda Shaunaka Samhita – Kanda 07 Sukta 065
By Dr. Sachchidanand Pathak, U.P. Sanskrit Sansthan, Lucknow, India.
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दुरितनाशनम्।
१-३ शुक्रः। अपामार्गवीरुत। अनुष्टुप्।
प्र॒ती॒चीन॑फलो॒ हि त्वमपा॑मार्ग रु॒रोहि॑थ ।
सर्वा॒न् मच्छ॒पथाँ अधि॒ वरी॑यो यावया इ॒तः ॥१॥
यद् दु॑ष्कृ॒तं यच्छम॑लं॒ यद् वा चेरि॒म पा॒पया॑ ।
त्वया॒ तद् वि॑श्वतोमु॒खापा॑मा॒र्गाप॑ मृज्महे ॥२॥
श्या॒वद॑ता कुन॒खिना॑ ब॒ण्डेन॒ यत् स॒हासि॒म।
अपा॑मार्ग॒ त्वया॑ व॒यं सर्वं॒ तदप॑ मृज्महे ॥३॥