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Atharvaveda Shaunaka Samhita – Kanda 07 Sukta 020
By Dr. Sachchidanand Pathak, U.P. Sanskrit Sansthan, Lucknow, India.
अनुमतिः।
१-६ अथर्वा। अनुमतिः। १-२ अनुष्टुप्, ३ त्रिष्टुप्, ४ भुरिक्, ५ जगती ६ अतिशाक्वरीगर्भा जगती।
अन्व॒द्य नोऽनु॑मतिर्य॒ज्ञं दे॒वेषु॑ मन्यताम्।
अ॒ग्निश्च॑ हव्य॒वाह॑नो॒ भव॑तां दा॒शुषे॒ मम॑ ॥१॥
अन्विद॑नुमते॒ त्वं मंस॑से॒ शं च॑ नस्कृधि ।
जुष॒स्व॑ ह॒व्यमाहु॑तं प्र॒जां दे॑वि ररास्व नः ॥२॥
अनु॑ मन्यतामनु॒मन्य॑मानः प्र॒जाव॑न्तं र॒यिमक्षी॑यमाणम्।
तस्य॑ व॒यं हेड॑सि॒ मापि॑ भूम सुमृडी॒के अ॑स्य सुम॒तौ स्या॑म ॥३॥
यत् ते॒ नाम॑ सु॒हवं॑ सुप्रणी॒तेऽनु॑मते॒ अनु॑मतं सु॒दानु॑ ।
तेना॑ नो य॒ज्ञं पि॑पृहि विश्ववारे र॒यिं नो॑ धेहि सुभगे सु॒वीर॑म्॥४॥
एमं य॒ज्ञमनु॑मतिर्जगाम सुक्षे॒त्रता॑यै सुवी॒रता॑यै सुजा॑तम्।
भ॒द्रा ह्यऽस्याः॒ प्रम॑तिर्ब॒भूव॒ सेमं य॒ज्ञम॑वतु दे॒वगो॑पा ॥५॥
अनु॑मतिः॒ सर्व॑मि॒दं ब॑भूव॒ यत् तिष्ठ॑ति॒ चर॑ति॒ यदु॑ च॒ विश्व॒मेज॑ति ।
तस्या॑स्ते देवि सुम॒तौ स्या॒मानु॑मते॒ अनु॒ हि मंस॑से नः ॥६॥