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Atharvaveda Shaunaka Samhita – Kanda 07 Sukta 014
By Dr. Sachchidanand Pathak, U.P. Sanskrit Sansthan, Lucknow, India.
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सविता
१-४ अथर्वा। सविता। अनुष्टुप्, ३ त्रिष्टुप्, ४ जगती।
अ॒भि त्यं दे॒वं स॑वि॒तार॑मो॒ण्योः क॒विक्र॑तुम्।
अर्चा॑मि स॒त्यस॑वं रत्न॒धाम॒भि प्रि॒यं म॒तिम्॥१॥
उ॒र्ध्वा यस्या॒मति॒र्भा अदि॑द्युत॒त् सवी॑मनि ।
हिर॑ण्यपाणिरमिमीत सु॒क्रतुः॑ कृ॒पात् स्वः ॥२॥
सावी॒र्हि दे॑व प्रथ॒माय॑ पि॒त्रे व॒र्ष्माण॑मस्मै वरि॒माण॑मस्मै ।
अथा॒स्मभ्यं॑ सवित॒र्वार्या॑णि दि॒वोदि॑व॒ आ सु॑वा॒ भूरि॑ प॒श्वः ॥३॥
दमू॑ना दे॒वः स॑वि॒ता वरे॑ण्यो॒ दध॒द् रत्नं॒ दक्षं पि॒तृभ्य॒ आयूं॑षि ।
पिबा॒त् सोमं॑ म॒मद॑देनमि॒ष्टे परि॑ज्मा चित् क्रमते अस्य॒ धर्म॑णि ॥४॥