SELECT KANDA
SELECT SUKTA OF KANDA 20
- 001
 - 002
 - 003
 - 004
 - 005
 - 006
 - 007
 - 008
 - 009
 - 010
 - 011
 - 012
 - 013
 - 014
 - 015
 - 016
 - 017
 - 018
 - 019
 - 020
 - 021
 - 022
 - 023
 - 024
 - 025
 - 026
 - 027
 - 028
 - 029
 - 030
 - 031
 - 032
 - 033
 - 034
 - 035
 - 036
 - 037
 - 038
 - 039
 - 040
 - 041
 - 042
 - 043
 - 044
 - 045
 - 046
 - 047
 - 048
 - 049
 - 050
 - 051
 - 052
 - 053
 - 054
 - 055
 - 056
 - 057
 - 058
 - 059
 - 060
 - 061
 - 062
 - 063
 - 064
 - 065
 - 066
 - 067
 - 068
 - 069
 - 070
 - 071
 - 072
 - 073
 - 074
 - 075
 - 076
 - 077
 - 078
 - 079
 - 080
 - 081
 - 082
 - 083
 - 084
 - 085
 - 086
 - 087
 - 088
 - 089
 - 090
 - 091
 - 092
 - 093
 - 094
 - 095
 - 096
 - 097
 - 098
 - 099
 - 100
 - 101
 - 102
 - 103
 - 104
 - 105
 - 106
 - 107
 - 108
 - 109
 - 110
 - 111
 - 112
 - 113
 - 114
 - 115
 - 116
 - 117
 - 118
 - 119
 - 120
 - 121
 - 122
 - 123
 - 124
 - 125
 - 126
 - 127
 - 128
 - 129
 - 130
 - 131
 - 132
 - 133
 - 134
 - 135
 - 136
 - 137
 - 138
 - 139
 - 140
 - 141
 - 142
 - 143
 
Atharvaveda Shaunaka Samhita – Kanda 20 Sukta 130
By Dr. Sachchidanand Pathak, U.P. Sanskrit Sansthan, Lucknow, India.
A
A+
खिलानि ।
को अ॑र्य बहु॒लिमा॒ इषू॑नि ॥१॥
को असि॒द्याः पयः॑ ॥२॥
को अर्जु॑न्याः॒ पयः॑ ॥३॥
कः का॒र्ष्ण्याः पयः॑ ॥४॥
ए॒तं पृ॑च्छ॒ कुहं॑ पृच्छ ॥५॥
कुहा॑कं पक्व॒कं पृ॑च्छ ॥६॥
यवा॑नो यति॒ष्वभिः॑ कुभिः ॥७॥
अकु॑प्यन्तः॒ कुपा॑यकुः ॥८॥
आम॑णको॒ मण॑त्सकः ॥९॥
देव॑ त्वप्रतिसूर्य ॥१०॥
एन॑श्चिपङ्क्ति॒का ह॒विः ॥११॥
प्रदुद्रु॑दो॒ मघा॑प्रति ॥१२॥
शृङ्ग॑ उत्पन्न ॥१३॥
मा त्वा॑भि॒ सखा॑ नो विदन्॥१४॥
व॒शायाः॑ पु॒त्रमा य॑न्ति ॥१५॥
इरा॑वेदु॒मयं॑ दत ॥१६॥
अथो॑ इ॒यन्निय॒न्निति॑ ॥१७॥
अथो॑ इ॒यन्निति॑ ॥१८॥
अथो॒ श्वा अस्थि॑रो भवन्॥१९॥
उ॒यं य॒कांश॑लोक॒का॥२०॥



 




