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Atharvaveda Shaunaka Samhita – Kanda 20 Sukta 014
By Dr. Sachchidanand Pathak, U.P. Sanskrit Sansthan, Lucknow, India.
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१-४ सोभरिः। इन्द्रः। प्रगाथः (विषमा ककुम्+समा सतोबृहती)
व॒यमु॒ त्वाम॑पूर्व्य स्थू॒रं न कच्चि॒द् भर॑न्तोऽव॒स्यवः॑ ।
वाजे॑ चि॒त्रं ह॑वामहे ॥१॥
उप॑ त्वा॒ कर्म॑न्नू॒तये॒ स नो॒ युवो॒ग्रश्च॑क्राम॒ यो धृ॒षत्।
त्वामिद्ध्य॑वि॒तारं॑ ववृ॒महे॒ सखा॑य इन्द्र सान॒सिम्॥२॥
यो न॑ इ॒दमि॑दं पु॒रा प्र वस्य॑ आनि॒नाय॒ तमु॑ व स्तुषे ।
सखा॑य॒ इन्द्र॑मू॒तये॑ ॥३॥
हर्य॑श्वं॒ सत्प॑तिं चर्षणी॒सहं॒ स हि ष्मा॒ यो अम॑न्दत ।
आ तु नः॒ स व॑यति॒ गव्य॒मश्व्यं॑ स्तो॒तृभ्यो॑ म॒घवा॑ श॒तम्॥४॥