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Atharvaveda Shaunaka Samhita – Kanda 20 Sukta 013
By Dr. Sachchidanand Pathak, U.P. Sanskrit Sansthan, Lucknow, India.
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(१-४) १ वामदेवः, २ गोतमः, ३ कुत्सः, ४ विश्वामित्रः। १ इन्द्राबृहस्पतिः, २ मरुतः, ३-४ अग्निः। १-३ जगती, ४ त्रिष्टुप्।
इन्द्र॑श्च॒ सोमं॑ पिबतं बृहस्पते॒ऽस्मिन् यज्ञे म॑न्दसा॒ना वृ॑षण्वसू ।
आ वां॑ विश॒न्त्विन्द॑वः स्वा॒भुवो॒ऽस्मे र॒यिं सर्व॑वीरं॒ नि य॑च्छतम्॥१॥
आ वो॑ वहन्तु॒ सप्त॑यो रघु॒ष्यदो॑ रघु॒पत्वा॑नः॒ प्र जि॑गात बा॒हुभिः॑ ।
सीद॒ता ब॒र्हिरु॒रु वः॒ सद॑स्कृ॒तं मा॒दय॑ध्वं मरुतो॒ मध्वो॒ अन्ध॑सः ॥२॥
इ॒मं स्तोम॒मर्ह॑ते जा॒तवे॑दसे॒ रथ॑मिव॒ सं म॑हेमा मनी॒षया॑ ।
भ॒द्रा हि नः॒ प्रम॑तिरस्य सं॒सद्यग्ने॑ स॒ख्ये मा रि॑षामा व॒यं तव॑ ॥३॥
ऐभि॑रग्ने स॒रथं॑ याह्य॒र्वाङ ना॑नार॒थं वा॑ वि॒भवो॒ ह्यश्वाः॑ ।
पत्नी॑वतस्त्रिं॒शतं॒ त्रींश्च॑ दे॒वान॑नुष्व॒धमां व॑ह मा॒दय॑स्व ॥४॥