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Atharvaveda Shaunaka Samhita – Kanda 20 Sukta 051
By Dr. Sachchidanand Pathak, U.P. Sanskrit Sansthan, Lucknow, India.
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अ॒भि प्र वः॑ सु॒राध॑स॒मिन्द्र॑मर्च॒ यथा॑ वि॒दे।
यो ज॑रि॒तृभ्यो॑ म॒घवा॑ पुरू॒वसुः॑ स॒हस्रे॑णेव॒ शिक्ष॑ति ॥१॥
श॒तानी॑केव॒ प्र जि॑गाति धृष्णु॒या हन्ति॑ वृ॒त्राणि॑ दा॒शुषे॑ ।
गि॒रेरि॑व॒ प्र रसा॑ अस्य पिन्विरे॒ दत्रा॑णि पुरु॒भोज॑सः ॥२॥
प्र सु श्रु॒तं सु॒राध॑स॒मर्चा॑ श॒क्रम॒भिष्ट॑ये ।
यः सु॑न्व॒ते स्तु॑व॒ते काम्यं॒ वसु॑ स॒हस्रे॑णेव॒ मंह॑ते ॥३॥
श॒तानी॑का हे॒तयो॑ अस्य दु॒ष्टरा॒ इन्द्र॑स्य स॒मिषो॑ म॒हीः ।
गि॒रिर्न भु॒ज्मा म॒घव॑त्सु पिन्वते॒ यदीं॑ सु॒ता अम॑न्दिषुः ॥४॥