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SELECT SUKTA OF KANDA 7
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Atharvaveda Shaunaka Samhita – Kanda 07 Sukta 109
By Dr. Sachchidanand Pathak, U.P. Sanskrit Sansthan, Lucknow, India.
राष्ट्रभृतः।
१-७ बादरायणिः। अग्निः। अनुष्टुप्, १ विराट् पुरस्ताद् बृहती, २,३,५-७ त्रिष्टुप्।
इ॒दमु॒ग्राय॑ ब॒भ्रवे॒ नमो॒ यो अ॒क्षेषु॑ तनूव॒शी।
घृ॒तेन॒ कलिं॑ शिक्षामि॒ स नो॑ मृडाती॒दृशे॑ ॥१॥
घृ॒तम॑प्स॒राभ्यो॑ वह॒ त्वम॑ग्ने पां॒सून॒क्षेभ्यः॒ सिक॑ता अ॒पश्च॑ ।
य॒था॒भ॒गं ह॒व्यदा॑तिं जुषा॒णा मद॑न्ति दे॒वा उ॒भया॑नि ह॒व्या॥२॥
अ॒प्स॒रसः॑ सध॒मादं॑ मदन्ति हवि॒र्धान॑मन्त॒रा सूर्यं॑ च ।
ता मे॒ हस्तौ॒ सं सृ॑जन्तु घृ॒तेन॑ स॒पत्नं॑ मे कित॒वं र॑न्धयन्तु ॥३॥
आ॒दि॒न॒वं प्र॑ति॒दीव्ने॑ घृ॒तेना॒स्माँ अ॒भि क्ष॑र ।
वृ॒क्षमि॑वा॒शन्या॑ जहि॒ यो अ॒स्मान् प्र॑ति॒दीव्य॑ति ॥४॥
यो नो॑ द्यु॒वे धन॑मि॒दं च॒कार॒ यो अ॒क्षाणां॒ ग्लह॑नं॒ शेष॑णं च ।
स नो॑ दे॒वो ह॒विरि॒दं जु॑षा॒णो ग॑न्ध॒र्वेभिः॑ सध॒मादं॑ मदेम ॥५॥
संव॑सव॒ इति॑ वो नाम॒धेय॑मुग्रंप॒श्या रा॑ष्ट्रभृतो॒ ह्य॑१क्षाः ।
तेभ्यो॑ व इन्दवो ह॒विषा॑ विधेम व॒यं स्या॑म॒ पत॑यो॒ रयी॒णाम्॥६॥
दे॒वान् यन्ना॑थि॒तो हु॒वे ब्र॑ह्म॒चर्यं॒ यदू॑षि॒म।
अ॒क्षान् यद् ब॒भ्रूना॒लभे॒ ते नो॑ मृडन्त्वी॒दृशे॑ ॥७॥