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Atharvaveda Shaunaka Samhita – Kanda 07 Sukta 080
By Dr. Sachchidanand Pathak, U.P. Sanskrit Sansthan, Lucknow, India.
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पूर्णिमा।
१-४ अथर्वा।पौर्णमासी, ३ प्रजापतिः। त्रिष्टुप्, २ अनुष्टुप्।
पू॒र्णा प॒श्चादु॒त पू॒र्णा पु॒रस्ता॒दुन्म॑ध्य॒तः पौ॑र्णमा॒सी जि॑गाय ।
तस्यां॑ दे॒वैः सं॒वस॑न्तो महि॒त्वा नाक॑स्य पृ॒ष्ठे समि॒षा म॑देम ॥१॥
वृ॒ष॒भं वा॒जिनं॑ व॒यं पौ॑र्णमा॒सं य॑जामहे ।
स नो॑ ददा॒त्वक्षि॑तां र॒यिमनु॑पदस्वतीम्॥२॥
प्रजा॑पते॒ न त्वदे॒तान्य॒न्यो विश्वा॑ रू॒पाणि॑ परि॒भूर्ज॑जान ।
यत् का॑मास्ते जुहु॒मस्तन्नो॑ अस्तु व॒यं स्या॑म॒ पत॑यो रयी॒णाम्॥३॥
पौ॒र्ण॒मा॒सी प्र॑थ॒मा य॒ज्ञिया॑सी॒दह्नां॒ रात्री॑णामतिशर्व॒रेषु॑ ।
ये त्वां य॒ज्ञैर्य॑ज्ञिये अ॒र्धय॑न्त्य॒मी ते नाके॑ सु॒कृतः॒ प्रवि॑ष्टाः ॥४॥