SELECT KANDA
SELECT SUKTA OF KANDA 7
- 001
- 002
- 003
- 004
- 005
- 006
- 007
- 008
- 009
- 010
- 011
- 012
- 013
- 014
- 015
- 016
- 017
- 018
- 019
- 020
- 021
- 022
- 023
- 024
- 025
- 026
- 027
- 028
- 029
- 030
- 031
- 032
- 033
- 034
- 035
- 036
- 037
- 038
- 039
- 040
- 041
- 042
- 043
- 044
- 045
- 046
- 047
- 048
- 049
- 050
- 051
- 052
- 053
- 054
- 055
- 056
- 057
- 058
- 059
- 060
- 061
- 062
- 063
- 064
- 065
- 066
- 067
- 068
- 069
- 070
- 071
- 072
- 073
- 074
- 075
- 076
- 077
- 078
- 079
- 080
- 081
- 082
- 083
- 084
- 085
- 086
- 087
- 088
- 089
- 090
- 091
- 092
- 093
- 094
- 095
- 096
- 097
- 098
- 099
- 100
- 101
- 102
- 103
- 104
- 105
- 106
- 107
- 108
- 109
- 110
- 111
- 112
- 113
- 114
- 115
- 116
- 117
- 118
Atharvaveda Shaunaka Samhita – Kanda 07 Sukta 074
By Dr. Sachchidanand Pathak, U.P. Sanskrit Sansthan, Lucknow, India.
A
A+
गण्डमालाचिकित्सा।
१-४ अथर्वाङ्गिराः। मन्त्रोक्ताः, ४ जातवेदाः। अनुष्टुप्।
अ॒प॒चितां॒ लोहि॑नीनां कृ॒ष्णा मा॒तेति॑ शुश्रुम ।
मुने॑र्दे॒वस्य॒ मूले॑न॒ सर्वा॑ विध्यामि॒ ता अ॒हम्॥१॥
विध्या॑म्यासां प्रथ॒मां विध्या॑म्यु॒त म॑ध्य॒माम्।
इ॒दं ज॑घ॒न्याऽमासा॒मा च्छि॑नद्मि॒ स्तुका॑मिव ॥२॥
त्वा॒ष्ट्रेणा॒हं वच॑सा॒ वि त॑ ई॒र्ष्याम॑मीमदम्।
अथो॒ यो म॒न्युष्टे॑ पते॒ तमु॑ ते शमयामसि ॥३॥
व्र॒तेन॒ त्वं व्र॑तपते॒ सम॑क्तो वि॒श्वाहा॑ सु॒मना॑ दीदिही॒ह।
तं त्वा॑ व॒यं जा॑तवेदः॒ समि॑द्धं प्र॒जाव॑न्त॒ उप॑ सदेम॒ सर्वे॑ ॥४॥