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Atharvaveda Shaunaka Samhita – Kanda 07 Sukta 053
By Dr. Sachchidanand Pathak, U.P. Sanskrit Sansthan, Lucknow, India.
दीर्घायुः।
१-७ ब्रह्मा। आयुः, बृहस्पतिः अश्विनौ च। १-२ त्रिष्टुप्, ३ भुरिक्, ४ उष्णिग्गर्भार्षी पङ्क्तिः, ५-७ अनुष्टुप्।
अ॒मु॒त्र॒भूया॒दधि॒ यद् य॒मस्य॒ बृह॑स्पतेर॒भिश॑स्तेर॑मुञ्चः ।
प्रत्यौ॑हताम॒श्विना॑ मृ॒त्युम॒स्मद् दे॒वाना॑मग्ने भि॒षजा॒ शची॑भिः ॥१॥
सं क्रा॑मतं॒ मा ज॑हीतं॒ शरी॑रं प्राणापा॒नौ ते॑ स॒युजा॑वि॒ह स्ता॑म्।
श॒तं जी॑व श॒रदो॒ वर्ध॑मानो॒ऽग्निष्टे॑ गो॒पा अ॑धि॒पा वसि॑ष्ठः ॥२॥
आयु॒र्यत् ते॒ अति॑हितं परा॒चैर॑पा॒नः प्रा॒णः पुन॒रा तावि॑ताम्।
अ॒ग्निष्टदाहा॒र्निरृ॑तेरु॒पस्था॒त् तदा॒त्मनि॒ पुन॒रा वे॑शयामि ते ॥३॥
मेमं प्रा॒णो हा॑सी॒न्मो अ॑पा॒नोऽव॒हाय॒ परा॑ गात्।
स॒प्त॒र्षिभ्य॑ एनं॒ परि॑ ददामि॒ त ए॑नं स्व॒स्ति ज॒रसे॑ वहन्तु ॥४॥
प्र वि॑शतं प्राणापानावन॒ड्वाहा॑विव व्र॒जम्।
अ॒यं ज॑रि॒म्णः शे॑व॒धिररि॑ष्ट इ॒ह व॑र्धताम्॥५॥
आ ते॑ प्रा॒णं सु॑वामसि॒ परा॒ यक्ष्मं॑ सुवामि ते ।
आयु॑र्नो वि॒श्वतो॑ दधद॒यम॒ग्निर्वरे॑ण्यः ॥६॥
उद् व॒यं तम॑स॒स्परि॒ रोह॑न्तो॒ नाक॑मुत्त॒मम्।
दे॒वं दे॑व॒त्रा सूर्य॒मग॑न्म॒ ज्योति॑रुत्त॒मम्॥७॥