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Atharvaveda Shaunaka Samhita – Kanda 07 Sukta 081
By Dr. Sachchidanand Pathak, U.P. Sanskrit Sansthan, Lucknow, India.
सूर्याचन्द्रमसौ।
१-६ अथर्वा। सावित्री, सूर्यः, चन्द्रमाः। त्रिष्टुप्, ३ अनुष्टुप्, ४ आस्तारपङ्क्तिः, ५ सम्राडास्तारपङ्क्तिः।
पू॒र्वा॒प॒रं च॑रतो मा॒ययै॒तौ शिशू॒ क्रीड॑न्तौ॒ परि॑ यातोऽर्ण॒वम्।
विश्वा॒न्यो भुव॑ना वि॒चष्ट॑ ऋ॒तूँर॒न्यो वि॒दध॑ज्जायसे॒ नवः॑ ॥१॥
नवो॑नवो भवसि॒ जाय॑मा॒नोऽह्नां॑ के॒तुरु॒षसा॑मे॒ष्यग्र॑म्।
भा॒गं दे॒वेभ्यो॒ वि द॑धास्या॒यन् प्र च॑न्द्रमस्तिरसे दी॒र्घमायुः॑ ॥२॥
सोम॑स्यांशो युधां प॒तेऽनू॑नो॒ नाम॒ वा अ॑सि ।
अनू॑नं दर्श मा कृधि प्र॒जया॑ च॒ धने॑न च ॥३॥
द॒र्शोऽसि दर्श॒तोऽसि॒ सम॑ग्रोऽसि॒ सम॑न्तः ।
सम॑ग्रः॒ सम॑न्तो भूयासं॒ गोभि॒रश्वैः॑ प्र॒जया॑ प॒शुभि॑र्गृहैर्धने॑न ॥४॥
यो॒३ऽस्मान् द्वेष्टि॒ यं व॒यं द्वि॒ष्मस्तस्य॒ त्वं प्रा॒णेना प्या॑यस्व ।
आ व॒यं प्या॑सिषीमहि॒ गोभि॒रश्वैः॑ प्र॒जया॑ प॒शुभि॑र्गृ॒हैर्धने॑न ॥५॥
यं दे॒वा अं॒शुमा॑प्या॒यय॑न्ति॒ यमक्षि॑त॒मक्षि॑ता भ॒क्षय॑न्ति ।
तेना॒स्मानिन्द्रो॒ वरु॑णो॒ बृह॒स्पति॒रा प्या॑ययन्तु॒ भुव॑नस्य गो॒पाः ॥६॥