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Atharvaveda Shaunaka Samhita – Kanda 07 Sukta 060
By Dr. Sachchidanand Pathak, U.P. Sanskrit Sansthan, Lucknow, India.
रम्यं गृहम्।
१-७ ब्रह्मा। गृहाः, वास्तोष्पतिः। अनुष्टुप्, १ परानुष्टुप् त्रिष्टुप्।
ऊर्जं॒ बिभ्र॑द् वसु॒वनिः॑ सुमे॒धा अघो॑रेण॒ चक्षु॑षा मि॒त्रिये॑ण ।
गृ॒हानैमि॑ सु॒मना॒ वन्द॑मानो॒ रम॑ध्वं॒ मा बि॑भीत॒ मत्॥१॥
इ॒मे गृ॒हा म॑यो॒भुव॒ ऊर्ज॑स्वन्तः॒ पय॑स्वन्तः ।
पू॒र्णा वा॒मेन॒ तिष्ठ॑न्त॒स्ते नो॑ जानन्त्वाय॒तः ॥२॥
येषा॑म॒ध्येति॑ प्र॒वस॒न् येषु॑ सौमन॒सो ब॒हुः ।
गृ॒हानुप॑ ह्वयामहे॒ ते नो॑ जानन्त्वाय॒तः ॥३॥
उप॑हूता॒ भूरि॑धनाः॒ सखा॑यः स्वा॒दुसं॑मुदः ।
अ॒क्षु॒ध्या अ॑तृ॒ष्या स्त॒ गृहा॒ मास्मद् बि॑भीतन ॥४॥
उप॑हूता इ॒ह गाव॒ उप॑हूता अजा॒वयः॑ ।
अथो॒ अन्न॑स्य की॒लाल॒ उप॑हूतो गृ॒हेषु॑ नः ॥५॥
सू॒नृता॑वन्तः सु॒भगा॒ इरा॑वन्तो हसामु॒दाः ।
अ॒तृ॒ष्या अ॑क्षु॒ध्या स्त॒ गृहा॒ मास्मद् बि॑भीतन ॥६॥
इ॒हैव स्त॒ मानु॑ गात॒ विश्वा॑ रू॒पाणि॑ पुष्यत ।
ऐष्या॑मि भ॒द्रेणा॑ स॒ह भूयां॑सो भवता॒ मया॑ ॥७॥