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Rigveda – Shakala Samhita – Mandala 05 Sukta 077
A
A+
५ भौमोऽत्रिः। अश्विनौ। त्रिष्टुप्।
प्रा॒त॒र्यावा॑णा प्रथ॒मा य॑जध्वं पु॒रा गृध्रा॒दर॑रुषः पिबातः ।
प्रा॒तर्हि य॒ज्ञम॒श्विना॑ द॒धाते॒ प्र शं॑सन्ति क॒वय॑: पूर्व॒भाज॑: ॥१॥
प्रा॒तर्य॑जध्वम॒श्विना॑ हिनोत॒ न सा॒यम॑स्ति देव॒या अजु॑ष्टम् ।
उ॒तान्यो अ॒स्मद् य॑जते॒ वि चाव॒: पूर्व॑:पूर्वो॒ यज॑मानो॒ वनी॑यान् ॥२॥
हिर॑ण्यत्व॒ङ्मधु॑वर्णो घृ॒तस्नु॒: पृक्षो॒ वह॒न्ना रथो॑ वर्तते वाम् ।
मनो॑जवा अश्विना॒ वात॑रंहा॒ येना॑तिया॒थो दु॑रि॒तानि॒ विश्वा॑ ॥३॥
यो भूयि॑ष्ठं॒ नास॑त्याभ्यां वि॒वेष॒ चनि॑ष्ठं पि॒त्वो रर॑ते विभा॒गे ।
स तो॒कम॑स्य पीपर॒च्छमी॑भि॒रनू॑र्ध्वभास॒: सद॒मित् तु॑तुर्यात् ॥४॥
सम॒श्विनो॒रव॑सा॒ नूत॑नेन मयो॒भुवा॑ सु॒प्रणी॑ती गमेम ।
आ नो॑ र॒यिं व॑हत॒मोत वी॒राना विश्वा॑न्यमृता॒ सौभ॑गानि ॥५॥
प्रा॒त॒र्यावा॑णा प्रथ॒मा य॑जध्वं पु॒रा गृध्रा॒दर॑रुषः पिबातः ।
प्रा॒तर्हि य॒ज्ञम॒श्विना॑ द॒धाते॒ प्र शं॑सन्ति क॒वय॑: पूर्व॒भाज॑: ॥१॥
प्रा॒तर्य॑जध्वम॒श्विना॑ हिनोत॒ न सा॒यम॑स्ति देव॒या अजु॑ष्टम् ।
उ॒तान्यो अ॒स्मद् य॑जते॒ वि चाव॒: पूर्व॑:पूर्वो॒ यज॑मानो॒ वनी॑यान् ॥२॥
हिर॑ण्यत्व॒ङ्मधु॑वर्णो घृ॒तस्नु॒: पृक्षो॒ वह॒न्ना रथो॑ वर्तते वाम् ।
मनो॑जवा अश्विना॒ वात॑रंहा॒ येना॑तिया॒थो दु॑रि॒तानि॒ विश्वा॑ ॥३॥
यो भूयि॑ष्ठं॒ नास॑त्याभ्यां वि॒वेष॒ चनि॑ष्ठं पि॒त्वो रर॑ते विभा॒गे ।
स तो॒कम॑स्य पीपर॒च्छमी॑भि॒रनू॑र्ध्वभास॒: सद॒मित् तु॑तुर्यात् ॥४॥
सम॒श्विनो॒रव॑सा॒ नूत॑नेन मयो॒भुवा॑ सु॒प्रणी॑ती गमेम ।
आ नो॑ र॒यिं व॑हत॒मोत वी॒राना विश्वा॑न्यमृता॒ सौभ॑गानि ॥५॥