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Rigveda – Shakala Samhita – Mandala 05 Sukta 082
A
A+
९ श्यावाश्व आत्रेयः। सविता। गायत्री, १ अनुष्टुप्।
तत् स॑वि॒तुर्वृ॑णीमहे व॒यं दे॒वस्य॒ भोज॑नम् । श्रेष्ठं॑ सर्व॒धात॑मं॒ तुरं॒ भग॑स्य धीमहि ॥१॥
अस्य॒ हि स्वय॑शस्तरं सवि॒तुः कच्च॒न प्रि॒यम् । न मि॒नन्ति॑ स्व॒राज्य॑म् ॥२॥
स हि रत्ना॑नि दा॒शुषे॑ सु॒वाति॑ सवि॒ता भग॑: । तं भा॒गं चि॒त्रमी॑महे ॥३॥
अ॒द्या नो॑ देव सवितः प्र॒जाव॑त् सावी॒: सौभ॑गम् । परा॑ दु॒ष्ष्वप्न्यं॑ सुव ॥४॥
विश्वा॑नि देव सवितर्दुरि॒तानि॒ परा॑ सुव । यद् भ॒द्रं तन्न॒ आ सु॑व ॥५॥
अना॑गसो॒ अदि॑तये दे॒वस्य॑ सवि॒तुः स॒वे । विश्वा॑ वा॒मानि॑ धीमहि ॥६॥
आ वि॒श्वदे॑वं॒ सत्प॑तिं सू॒क्तैर॒द्या वृ॑णीमहे । स॒त्यस॑वं सवि॒तार॑म् ॥७॥
य इ॒मे उ॒भे अह॑नी पु॒र एत्यप्र॑युच्छन् । स्वा॒धीर्दे॒वः स॑वि॒ता ॥८॥
य इ॒मा विश्वा॑ जा॒तान्या॑श्रा॒वय॑ति॒ श्लोके॑न । प्र च॑ सु॒वाति॑ सवि॒ता ॥९॥
तत् स॑वि॒तुर्वृ॑णीमहे व॒यं दे॒वस्य॒ भोज॑नम् । श्रेष्ठं॑ सर्व॒धात॑मं॒ तुरं॒ भग॑स्य धीमहि ॥१॥
अस्य॒ हि स्वय॑शस्तरं सवि॒तुः कच्च॒न प्रि॒यम् । न मि॒नन्ति॑ स्व॒राज्य॑म् ॥२॥
स हि रत्ना॑नि दा॒शुषे॑ सु॒वाति॑ सवि॒ता भग॑: । तं भा॒गं चि॒त्रमी॑महे ॥३॥
अ॒द्या नो॑ देव सवितः प्र॒जाव॑त् सावी॒: सौभ॑गम् । परा॑ दु॒ष्ष्वप्न्यं॑ सुव ॥४॥
विश्वा॑नि देव सवितर्दुरि॒तानि॒ परा॑ सुव । यद् भ॒द्रं तन्न॒ आ सु॑व ॥५॥
अना॑गसो॒ अदि॑तये दे॒वस्य॑ सवि॒तुः स॒वे । विश्वा॑ वा॒मानि॑ धीमहि ॥६॥
आ वि॒श्वदे॑वं॒ सत्प॑तिं सू॒क्तैर॒द्या वृ॑णीमहे । स॒त्यस॑वं सवि॒तार॑म् ॥७॥
य इ॒मे उ॒भे अह॑नी पु॒र एत्यप्र॑युच्छन् । स्वा॒धीर्दे॒वः स॑वि॒ता ॥८॥
य इ॒मा विश्वा॑ जा॒तान्या॑श्रा॒वय॑ति॒ श्लोके॑न । प्र च॑ सु॒वाति॑ सवि॒ता ॥९॥