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Rigveda – Shakala Samhita – Mandala 05 Sukta 022
A
A+
४ विश्वसामा आत्रेयः। अग्निः। अनुष्टुप्, ४ पंक्तिः।
प्र वि॑श्वसामन्नत्रि॒वदर्चा॑ पाव॒कशो॑चिषे । यो अ॑ध्व॒रेष्वीड्यो॒ होता॑ म॒न्द्रत॑मो वि॒शि ॥१॥
न्य१ग्निं जा॒तवे॑दसं॒ दधा॑ता दे॒वमृ॒त्विज॑म् । प्र य॒ज्ञ ए॑त्वानु॒षग॒द्या दे॒वव्य॑चस्तमः ॥२॥
चि॒कि॒त्विन्म॑नसं त्वा दे॒वं मर्ता॑स ऊ॒तये॑ । वरे॑ण्यस्य॒ तेऽव॑स इया॒नासो॑ अमन्महि ॥३॥
अग्ने॑ चिकि॒द्ध्य१स्य न॑ इ॒दं वच॑: सहस्य ।
तं त्वा॑ सुशिप्र दम्पते॒ स्तोमै॑र्वर्ध॒न्त्यत्र॑यो गी॒र्भिः शु॑म्भ॒न्त्यत्र॑यः ॥४॥
प्र वि॑श्वसामन्नत्रि॒वदर्चा॑ पाव॒कशो॑चिषे । यो अ॑ध्व॒रेष्वीड्यो॒ होता॑ म॒न्द्रत॑मो वि॒शि ॥१॥
न्य१ग्निं जा॒तवे॑दसं॒ दधा॑ता दे॒वमृ॒त्विज॑म् । प्र य॒ज्ञ ए॑त्वानु॒षग॒द्या दे॒वव्य॑चस्तमः ॥२॥
चि॒कि॒त्विन्म॑नसं त्वा दे॒वं मर्ता॑स ऊ॒तये॑ । वरे॑ण्यस्य॒ तेऽव॑स इया॒नासो॑ अमन्महि ॥३॥
अग्ने॑ चिकि॒द्ध्य१स्य न॑ इ॒दं वच॑: सहस्य ।
तं त्वा॑ सुशिप्र दम्पते॒ स्तोमै॑र्वर्ध॒न्त्यत्र॑यो गी॒र्भिः शु॑म्भ॒न्त्यत्र॑यः ॥४॥