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Rigveda – Shakala Samhita – Mandala 05 Sukta 037
A
A+
५ भौमोऽत्रिः। इन्द्रः। त्रिष्टुप्।
सं भा॒नुना॑ यतते॒ सूर्य॑स्या॒ऽऽजुह्वा॑नो घृ॒तपृ॑ष्ठ॒: स्वञ्चा॑: ।
तस्मा॒ अमृ॑ध्रा उ॒षसो॒ व्यु॑च्छा॒न् य इन्द्रा॑य सु॒नवा॒मेत्याह॑ ॥ १॥
समि॑द्धाग्निर्वनवत् स्ती॒र्णब॑र्हिर्यु॒क्तग्रा॑वा सु॒तसो॑मो जराते ।
ग्रावा॑णो॒ यस्ये॑षि॒रं वद॒न्त्यय॑दध्व॒र्युर्ह॒विषाव॒ सिन्धु॑म् ॥२॥
व॒धूरि॒यं पति॑मि॒च्छन्त्ये॑ति॒ य ईं॒ वहा॑ते॒ महि॑षीमिषि॒राम् ।
आस्य॑ श्रवस्या॒द् रथ॒ आ च॑ घोषात् पु॒रू स॒हस्रा॒ परि॑ वर्तयाते ॥३॥
न स राजा॑ व्यथते॒ यस्मि॒न्निन्द्र॑स्ती॒व्रं सोमं॒ पिब॑ति॒ गोस॑खायम् ।
आ स॑त्व॒नैरज॑ति॒ हन्ति॑ वृ॒त्रं क्षेति॑ क्षि॒तीः सु॒भगो॒ नाम॒ पुष्य॑न् ॥४॥
पुष्या॒त् क्षेमे॑ अ॒भि योगे॑ भवात्यु॒भे वृतौ॑ संय॒ती सं ज॑याति ।
प्रि॒यः सूर्ये॑ प्रि॒यो अ॒ग्ना भ॑वाति॒ य इन्द्रा॑य सु॒तसो॑मो॒ ददा॑शत् ॥५॥
सं भा॒नुना॑ यतते॒ सूर्य॑स्या॒ऽऽजुह्वा॑नो घृ॒तपृ॑ष्ठ॒: स्वञ्चा॑: ।
तस्मा॒ अमृ॑ध्रा उ॒षसो॒ व्यु॑च्छा॒न् य इन्द्रा॑य सु॒नवा॒मेत्याह॑ ॥ १॥
समि॑द्धाग्निर्वनवत् स्ती॒र्णब॑र्हिर्यु॒क्तग्रा॑वा सु॒तसो॑मो जराते ।
ग्रावा॑णो॒ यस्ये॑षि॒रं वद॒न्त्यय॑दध्व॒र्युर्ह॒विषाव॒ सिन्धु॑म् ॥२॥
व॒धूरि॒यं पति॑मि॒च्छन्त्ये॑ति॒ य ईं॒ वहा॑ते॒ महि॑षीमिषि॒राम् ।
आस्य॑ श्रवस्या॒द् रथ॒ आ च॑ घोषात् पु॒रू स॒हस्रा॒ परि॑ वर्तयाते ॥३॥
न स राजा॑ व्यथते॒ यस्मि॒न्निन्द्र॑स्ती॒व्रं सोमं॒ पिब॑ति॒ गोस॑खायम् ।
आ स॑त्व॒नैरज॑ति॒ हन्ति॑ वृ॒त्रं क्षेति॑ क्षि॒तीः सु॒भगो॒ नाम॒ पुष्य॑न् ॥४॥
पुष्या॒त् क्षेमे॑ अ॒भि योगे॑ भवात्यु॒भे वृतौ॑ संय॒ती सं ज॑याति ।
प्रि॒यः सूर्ये॑ प्रि॒यो अ॒ग्ना भ॑वाति॒ य इन्द्रा॑य सु॒तसो॑मो॒ ददा॑शत् ॥५॥