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Atharvaveda Shaunaka Samhita – Kanda 07 Sukta 079
By Dr. Sachchidanand Pathak, U.P. Sanskrit Sansthan, Lucknow, India.
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अमावास्या।
१-४ अथर्वा। अमावास्या। त्रिष्टुप्, १ जगती।
यत् ते॑ दे॒वा अकृ॑ण्वन् भाग॒धेय॒ममा॑वास्ये सं॒वस॑न्तो महि॒त्वा।
तेना॑ नो य॒ज्ञं पि॑पृहि विश्ववारे र॒यिं नो॑ धेहि सुभगे सु॒वीर॑म्॥१॥
अ॒हमे॒वास्म्य॑मावा॒स्या॒३ मामा व॑सन्ति सु॒कृतो॒ मयी॒मे।
मयि॑ दे॒वा उ॒भये॑ सा॒ध्याश्चेन्द्र॑ज्येष्ठाः॒ सम॑गच्छन्त॒ सर्वे॑ ॥२॥
आग॒न् रात्री॑ सं॒गम॑नी॒ वसू॑ना॒मूर्जं॑ पु॒ष्टं वस्वा॑वे॒शय॑न्ती ।
अ॒मा॒वा॒स्याऽयै ह॒विषा॑ विधे॒मोर्जं॒ दुहा॑ना॒ पय॑सा न॒ आग॑न्॥३॥
अमा॑वास्ये न त्वदे॒तान्य॒न्यो विश्वा॑ रू॒पाणि॑ परि॒भूर्ज॑जान ।
यत् का॑मास्ते जुहु॒मस्तन्नो॑ अस्तु व॒यं स्या॑म॒ पत॑यो रयि॒णाम्॥४॥