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Atharvaveda Shaunaka Samhita – Kanda 07 Sukta 035
By Dr. Sachchidanand Pathak, U.P. Sanskrit Sansthan, Lucknow, India.
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सपत्नीनाशनम्।
१-३ अथर्वा। जातवेदाः। १ जगती, २ अनुष्टुप्, ३ त्रिष्टुप्।
प्रान्यान्त्स॒पत्ना॒न्त्सह॑सा॒ सह॑स्व॒ प्रत्यजा॑तान् जातवेदो नुदस्व ।
इ॒दं रा॒ष्ट्रं पि॑पृ॒हि सौभ॑गाय॒ विश्व॑ एन॒मनु॑ मदन्तु दे॒वाः ॥१॥
इ॒मा यास्ते॑ श॒तं हि॒राः स॒हस्रं॑ ध॒मनी॑रु॒त।
तासां॑ ते॒ सर्वा॑साम॒हमश्म॑ना॒ बिल॒मप्य॑धाम्॥२॥
परं॒ योने॒रव॑रं ते कृणोमि॒ मा त्वा॑ प्र॒जाभि भू॒न्मोत सूनुः॑ ।
अ॒स्वं॑१ त्वाप्र॑जसं कृणो॒म्यश्मा॑नं ते अपि॒धानं कृणोमि ॥३॥