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Rigveda – Shakala Samhita – Mandala 05 Sukta 039
A
A+
५ भौमोऽत्रिः। इन्द्रः। अनुष्टुप्, ५पङ्क्तिः।
यदि॑न्द्र चित्र मे॒हनास्ति॒ त्वादा॑तमद्रिवः ।
राध॒स्तन्नो॑ विदद्वस उभयाह॒स्त्या भ॑र ॥१॥
यन्मन्य॑से॒ वरे॑ण्य॒मिन्द्र॑ द्यु॒क्षं तदा भ॑र ।
वि॒द्याम॒ तस्य॑ ते व॒यमकू॑पारस्य दा॒वने॑ ॥२॥
यत् ते॑ दि॒त्सु प्र॒राध्यं॒ मनो॒ अस्ति॑ श्रु॒तं बृ॒हत् ।
तेन॑ दृ॒ळहा चि॑दद्रिव॒ आ वाजं॑ दर्षि सा॒तये॑ ॥३॥
मंहि॑ष्ठं वो म॒घोनां॒ राजा॑नं चर्षणी॒नाम् ।
इन्द्र॒मुप॒ प्रश॑स्तये पू॒र्वीभि॑र्जुजुषे॒ गिर॑: ॥४॥
अस्मा॒ इत् काव्यं॒ वच॑ उ॒क्थमिन्द्रा॑य॒ शंस्य॑म् ।
तस्मा॑ उ॒ ब्रह्म॑वाहसे॒ गिरो॑ वर्ध॒न्त्यत्र॑यो॒ गिर॑: शुम्भ॒न्त्यत्र॑यः ॥५॥
यदि॑न्द्र चित्र मे॒हनास्ति॒ त्वादा॑तमद्रिवः ।
राध॒स्तन्नो॑ विदद्वस उभयाह॒स्त्या भ॑र ॥१॥
यन्मन्य॑से॒ वरे॑ण्य॒मिन्द्र॑ द्यु॒क्षं तदा भ॑र ।
वि॒द्याम॒ तस्य॑ ते व॒यमकू॑पारस्य दा॒वने॑ ॥२॥
यत् ते॑ दि॒त्सु प्र॒राध्यं॒ मनो॒ अस्ति॑ श्रु॒तं बृ॒हत् ।
तेन॑ दृ॒ळहा चि॑दद्रिव॒ आ वाजं॑ दर्षि सा॒तये॑ ॥३॥
मंहि॑ष्ठं वो म॒घोनां॒ राजा॑नं चर्षणी॒नाम् ।
इन्द्र॒मुप॒ प्रश॑स्तये पू॒र्वीभि॑र्जुजुषे॒ गिर॑: ॥४॥
अस्मा॒ इत् काव्यं॒ वच॑ उ॒क्थमिन्द्रा॑य॒ शंस्य॑म् ।
तस्मा॑ उ॒ ब्रह्म॑वाहसे॒ गिरो॑ वर्ध॒न्त्यत्र॑यो॒ गिर॑: शुम्भ॒न्त्यत्र॑यः ॥५॥