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Rigveda – Shakala Samhita – Mandala 05 Sukta 028
A
A+
६ विश्ववारात्रेयी। अग्निः। १, ३ त्रिष्टुप्, २ जगती, ४ अनुष्टुप्, ५-६ गायत्री।
समि॑द्धो अ॒ग्निर्दि॒वि शो॒चिर॑श्रेत् प्र॒त्यङ्ङु॒षस॑मुर्वि॒या वि भा॑ति ।
एति॒ प्राची॑ वि॒श्ववा॑रा॒ नमो॑भिर्दे॒वाँ ईळा॑ना ह॒विषा॑ घृ॒ताची॑ ॥१॥
स॒मि॒ध्यमा॑नो अ॒मृत॑स्य राजसि ह॒विष्कृ॒ण्वन्तं॑ सचसे स्व॒स्तये॑ ।
विश्वं॒ स ध॑त्ते॒ द्रवि॑णं॒ यमिन्व॑स्याति॒थ्यम॑ग्ने॒ नि च॑ धत्त॒ इत् पु॒रः ॥२॥
अग्ने॒ शर्ध॑ मह॒ते सौभ॑गाय॒ तव॑ द्यु॒म्नान्यु॑त्त॒मानि॑ सन्तु ।
सं जा॑स्प॒त्यं सु॒यम॒मा कृ॑णुष्व शत्रूय॒ताम॒भि ति॑ष्ठा॒ महां॑सि ॥३॥
समि॑द्धस्य॒ प्रम॑ह॒सोऽग्ने॒ वन्दे॒ तव॒ श्रिय॑म् ।
वृ॒ष॒भो द्यु॒म्नवाँ॑ असि॒ सम॑ध्व॒रेष्वि॑ध्यसे ॥४॥
समि॑द्धो अग्न आहुत दे॒वान् य॑क्षि स्वध्वर । त्वं हि ह॑व्य॒वाळसि॑ ॥५॥
आ जु॑होता दुव॒स्यता॒ऽग्निं प्र॑य॒त्य॑ध्व॒रे । वृ॒णी॒ध्वं ह॑व्य॒वाह॑नम् ॥६॥
समि॑द्धो अ॒ग्निर्दि॒वि शो॒चिर॑श्रेत् प्र॒त्यङ्ङु॒षस॑मुर्वि॒या वि भा॑ति ।
एति॒ प्राची॑ वि॒श्ववा॑रा॒ नमो॑भिर्दे॒वाँ ईळा॑ना ह॒विषा॑ घृ॒ताची॑ ॥१॥
स॒मि॒ध्यमा॑नो अ॒मृत॑स्य राजसि ह॒विष्कृ॒ण्वन्तं॑ सचसे स्व॒स्तये॑ ।
विश्वं॒ स ध॑त्ते॒ द्रवि॑णं॒ यमिन्व॑स्याति॒थ्यम॑ग्ने॒ नि च॑ धत्त॒ इत् पु॒रः ॥२॥
अग्ने॒ शर्ध॑ मह॒ते सौभ॑गाय॒ तव॑ द्यु॒म्नान्यु॑त्त॒मानि॑ सन्तु ।
सं जा॑स्प॒त्यं सु॒यम॒मा कृ॑णुष्व शत्रूय॒ताम॒भि ति॑ष्ठा॒ महां॑सि ॥३॥
समि॑द्धस्य॒ प्रम॑ह॒सोऽग्ने॒ वन्दे॒ तव॒ श्रिय॑म् ।
वृ॒ष॒भो द्यु॒म्नवाँ॑ असि॒ सम॑ध्व॒रेष्वि॑ध्यसे ॥४॥
समि॑द्धो अग्न आहुत दे॒वान् य॑क्षि स्वध्वर । त्वं हि ह॑व्य॒वाळसि॑ ॥५॥
आ जु॑होता दुव॒स्यता॒ऽग्निं प्र॑य॒त्य॑ध्व॒रे । वृ॒णी॒ध्वं ह॑व्य॒वाह॑नम् ॥६॥