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Rigveda – Shakala Samhita – Mandala 05 Sukta 023
A
A+
४ द्युम्नो विश्वचर्षणिरात्रेयः । अग्निः। अनुष्टुप्, ४ पंक्तिः।
अग्ने॒ सह॑न्त॒मा भ॑र द्यु॒म्नस्य॑ प्रा॒सहा॑ र॒यिम् । विश्वा॒ यश्च॑र्ष॒णीर॒भ्या॒३सा वाजे॑षु सा॒सह॑त् ॥१॥
तम॑ग्ने पृतना॒षहं॑ र॒यिं स॑हस्व॒ आ भ॑र । त्वं हि स॒त्यो अद्भु॑तो दा॒ता वाज॑स्य॒ गोम॑तः ॥२॥
विश्वे॒ हि त्वा॑ स॒जोष॑सो॒ जना॑सो वृ॒क्तब॑र्हिषः । होता॑रं॒ सद्म॑सु प्रि॒यं व्यन्ति॒ वार्या॑ पु॒रु ॥३॥
स हि ष्मा॑ वि॒श्वच॑र्षणिर॒भिमा॑ति॒ सहो॑ द॒धे ।
अग्न॑ ए॒षु क्षये॒ष्वा रे॒वन्न॑: शुक्र दीदिहि द्यु॒मत् पा॑वक दीदिहि ॥४॥
अग्ने॒ सह॑न्त॒मा भ॑र द्यु॒म्नस्य॑ प्रा॒सहा॑ र॒यिम् । विश्वा॒ यश्च॑र्ष॒णीर॒भ्या॒३सा वाजे॑षु सा॒सह॑त् ॥१॥
तम॑ग्ने पृतना॒षहं॑ र॒यिं स॑हस्व॒ आ भ॑र । त्वं हि स॒त्यो अद्भु॑तो दा॒ता वाज॑स्य॒ गोम॑तः ॥२॥
विश्वे॒ हि त्वा॑ स॒जोष॑सो॒ जना॑सो वृ॒क्तब॑र्हिषः । होता॑रं॒ सद्म॑सु प्रि॒यं व्यन्ति॒ वार्या॑ पु॒रु ॥३॥
स हि ष्मा॑ वि॒श्वच॑र्षणिर॒भिमा॑ति॒ सहो॑ द॒धे ।
अग्न॑ ए॒षु क्षये॒ष्वा रे॒वन्न॑: शुक्र दीदिहि द्यु॒मत् पा॑वक दीदिहि ॥४॥