SELECT MANDALA
SELECT SUKTA OF MANDALA 05
- 001
- 002
- 003
- 004
- 005
- 006
- 007
- 008
- 009
- 010
- 011
- 012
- 013
- 014
- 015
- 016
- 017
- 018
- 019
- 020
- 021
- 022
- 023
- 024
- 025
- 026
- 027
- 028
- 029
- 030
- 031
- 032
- 033
- 034
- 035
- 036
- 037
- 038
- 039
- 040
- 041
- 042
- 043
- 044
- 045
- 046
- 047
- 048
- 049
- 050
- 051
- 052
- 053
- 054
- 055
- 056
- 057
- 058
- 059
- 060
- 061
- 062
- 063
- 064
- 065
- 066
- 067
- 068
- 069
- 070
- 071
- 072
- 073
- 074
- 075
- 076
- 077
- 078
- 079
- 080
- 081
- 082
- 083
- 084
- 085
- 086
- 087
Rigveda – Shakala Samhita – Mandala 05 Sukta 018
A
A+
५ द्वितो मृक्तवाहा आत्रेयः। अग्निः। अनुष्टुप्, ५ पंक्तिः।
प्रा॒तर॒ग्निः पु॑रुप्रि॒यो वि॒शः स्त॑वे॒ताति॑थिः ।
विश्वा॑नि॒ यो अम॑र्त्यो ह॒व्या मर्ते॑षु॒ रण्य॑ति ॥१॥
द्वि॒ताय॑ मृ॒क्तवा॑हसे॒ स्वस्य॒ दक्ष॑स्य मं॒हना॑ ।
इन्दुं॒ स ध॑त्त आनु॒षक् स्तो॒ता चि॑त्ते अमर्त्य ॥२॥
तं वो॑ दी॒र्घायु॑शोचिषं गि॒रा हु॑वे म॒घोना॑म् ।
अरि॑ष्टो॒ येषां॒ रथो॒ व्य॑श्वदाव॒न्नीय॑ते ॥३॥
चि॒त्रा वा॒ येषु॒ दीधि॑तिरा॒सन्नु॒क्था पान्ति॒ ये ।
स्ती॒र्णं ब॒र्हिः स्व॑र्णरे॒ श्रवां॑सि दधिरे॒ परि॑ ॥४॥
ये मे॑ पञ्चा॒शतं॑ द॒दुरश्वा॑नां स॒धस्तु॑ति ।
द्यु॒मद॑ग्ने॒ महि॒ श्रवो॑ बृ॒हत् कृ॑धि म॒घोनां॑ नृ॒वद॑मृत नृ॒णाम् ॥५॥
प्रा॒तर॒ग्निः पु॑रुप्रि॒यो वि॒शः स्त॑वे॒ताति॑थिः ।
विश्वा॑नि॒ यो अम॑र्त्यो ह॒व्या मर्ते॑षु॒ रण्य॑ति ॥१॥
द्वि॒ताय॑ मृ॒क्तवा॑हसे॒ स्वस्य॒ दक्ष॑स्य मं॒हना॑ ।
इन्दुं॒ स ध॑त्त आनु॒षक् स्तो॒ता चि॑त्ते अमर्त्य ॥२॥
तं वो॑ दी॒र्घायु॑शोचिषं गि॒रा हु॑वे म॒घोना॑म् ।
अरि॑ष्टो॒ येषां॒ रथो॒ व्य॑श्वदाव॒न्नीय॑ते ॥३॥
चि॒त्रा वा॒ येषु॒ दीधि॑तिरा॒सन्नु॒क्था पान्ति॒ ये ।
स्ती॒र्णं ब॒र्हिः स्व॑र्णरे॒ श्रवां॑सि दधिरे॒ परि॑ ॥४॥
ये मे॑ पञ्चा॒शतं॑ द॒दुरश्वा॑नां स॒धस्तु॑ति ।
द्यु॒मद॑ग्ने॒ महि॒ श्रवो॑ बृ॒हत् कृ॑धि म॒घोनां॑ नृ॒वद॑मृत नृ॒णाम् ॥५॥