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Rigveda – Shakala Samhita – Mandala 05 Sukta 014
A
A+
६ सुतंभर आत्रेयः। अग्निः । गायत्री।
अ॒ग्निं स्तोमे॑न बोधय समिधा॒नो अम॑र्त्यम् । ह॒व्या दे॒वेषु॑ नो दधत् ॥१॥
तम॑ध्व॒रेष्वी॑ळते दे॒वं मर्ता॒ अम॑र्त्यम् । यजि॑ष्ठं॒ मानु॑षे॒ जने॑ ॥२॥
तं हि शश्व॑न्त॒ ईळ॑ते स्रु॒चा दे॒वं घृ॑त॒श्चुता॑ । अ॒ग्निं ह॒व्याय॒ वोळह॑वे ॥३॥
अ॒ग्निर्जा॒तो अ॑रोचत॒ घ्नन् दस्यू॒ञ्ज्योति॑षा॒ तम॑: । अवि॑न्द॒द् गा अ॒पः स्व॑: ॥४॥
अ॒ग्निमी॒ळेन्यं॑ क॒विं घृ॒तपृ॑ष्ठं सपर्यत । वेतु॑ मे शृ॒णव॒द्धव॑म् ॥५॥
अ॒ग्निं घृ॒तेन॑ वावृधु॒: स्तोमे॑भिर्वि॒श्वच॑र्षणिम् । स्वा॒धीभि॑र्वच॒स्युभि॑: ॥६॥
अ॒ग्निं स्तोमे॑न बोधय समिधा॒नो अम॑र्त्यम् । ह॒व्या दे॒वेषु॑ नो दधत् ॥१॥
तम॑ध्व॒रेष्वी॑ळते दे॒वं मर्ता॒ अम॑र्त्यम् । यजि॑ष्ठं॒ मानु॑षे॒ जने॑ ॥२॥
तं हि शश्व॑न्त॒ ईळ॑ते स्रु॒चा दे॒वं घृ॑त॒श्चुता॑ । अ॒ग्निं ह॒व्याय॒ वोळह॑वे ॥३॥
अ॒ग्निर्जा॒तो अ॑रोचत॒ घ्नन् दस्यू॒ञ्ज्योति॑षा॒ तम॑: । अवि॑न्द॒द् गा अ॒पः स्व॑: ॥४॥
अ॒ग्निमी॒ळेन्यं॑ क॒विं घृ॒तपृ॑ष्ठं सपर्यत । वेतु॑ मे शृ॒णव॒द्धव॑म् ॥५॥
अ॒ग्निं घृ॒तेन॑ वावृधु॒: स्तोमे॑भिर्वि॒श्वच॑र्षणिम् । स्वा॒धीभि॑र्वच॒स्युभि॑: ॥६॥