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Rigveda – Shakala Samhita – Mandala 05 Sukta 013
A
A+
६ सुतंभर आत्रेयः। अग्निः । गायत्री।
अर्च॑न्तस्त्वा हवाम॒हेऽर्च॑न्त॒: समि॑धीमहि । अग्ने॒ अर्च॑न्त ऊ॒तये॑ ॥१॥
अ॒ग्नेः स्तोमं॑ मनामहे सि॒ध्रम॒द्य दि॑वि॒स्पृश॑: । दे॒वस्य॑ द्रविण॒स्यव॑: ॥२॥
अ॒ग्निर्जु॑षत नो॒ गिरो॒ होता॒ यो मानु॑षे॒ष्वा । स य॑क्ष॒द् दैव्यं॒ जन॑म् ॥३॥
त्वम॑ग्ने स॒प्रथा॑ असि॒ जुष्टो॒ होता॒ वरे॑ण्यः । त्वया॑ य॒ज्ञं वि त॑न्वते ॥४॥
त्वाम॑ग्ने वाज॒सात॑मं॒ विप्रा॑ वर्धन्ति॒ सुष्टु॑तम् । स नो॑ रास्व सु॒वीर्य॑म् ॥५॥
अग्ने॑ ने॒मिर॒राँ इ॑व दे॒वाँस्त्वं प॑रि॒भूर॑सि । आ राध॑श्चि॒त्रमृ॑ञ्जसे ॥६॥
अर्च॑न्तस्त्वा हवाम॒हेऽर्च॑न्त॒: समि॑धीमहि । अग्ने॒ अर्च॑न्त ऊ॒तये॑ ॥१॥
अ॒ग्नेः स्तोमं॑ मनामहे सि॒ध्रम॒द्य दि॑वि॒स्पृश॑: । दे॒वस्य॑ द्रविण॒स्यव॑: ॥२॥
अ॒ग्निर्जु॑षत नो॒ गिरो॒ होता॒ यो मानु॑षे॒ष्वा । स य॑क्ष॒द् दैव्यं॒ जन॑म् ॥३॥
त्वम॑ग्ने स॒प्रथा॑ असि॒ जुष्टो॒ होता॒ वरे॑ण्यः । त्वया॑ य॒ज्ञं वि त॑न्वते ॥४॥
त्वाम॑ग्ने वाज॒सात॑मं॒ विप्रा॑ वर्धन्ति॒ सुष्टु॑तम् । स नो॑ रास्व सु॒वीर्य॑म् ॥५॥
अग्ने॑ ने॒मिर॒राँ इ॑व दे॒वाँस्त्वं प॑रि॒भूर॑सि । आ राध॑श्चि॒त्रमृ॑ञ्जसे ॥६॥