SELECT MANDALA
SELECT SUKTA OF MANDALA 08
- 001
- 002
- 003
- 004
- 005
- 006
- 007
- 008
- 009
- 010
- 011
- 012
- 013
- 014
- 015
- 016
- 017
- 018
- 019
- 020
- 021
- 022
- 023
- 024
- 025
- 026
- 027
- 028
- 029
- 030
- 031
- 032
- 033
- 034
- 035
- 036
- 037
- 038
- 039
- 040
- 041
- 042
- 043
- 044
- 045
- 046
- 047
- 048
- 049
- 050
- 051
- 052
- 053
- 054
- 055
- 056
- 057
- 058
- 059
- 060
- 061
- 062
- 063
- 064
- 065
- 067
- 068
- 069
- 070
- 071
- 072
- 073
- 074
- 075
- 076
- 077
- 078
- 079
- 080
- 081
- 082
- 083
- 084
- 085
- 086
- 087
- 088
- 089
- 090
- 091
- 092
- 093
- 094
- 095
- 096
- 097
- 098
- 099
- 100
- 101
- 102
- 103
Rigveda – Shakala Samhita – Mandala 08 Sukta 078
A
A+
१० कुरुसुति: काण्व:। इन्द्र: ।गायत्री, १० बृहती ।
पु॒रो॒ळाशं॑ नो॒ अन्ध॑स॒ इन्द्र॑ स॒हस्र॒मा भ॑र । श॒ता च॑ शूर॒ गोना॑म् ॥१॥
आ नो॑ भर॒ व्यञ्ज॑नं॒ गामश्व॑म॒भ्यञ्ज॑नम् । सचा॑ म॒ना हि॑र॒ण्यया॑ ॥२॥
उ॒त न॑: कर्ण॒शोभ॑ना पु॒रूणि॑ धृष्ण॒वा भ॑र । त्वं हि शृ॑ण्वि॒षे व॑सो ॥३॥
नकीं॑ वृधी॒क इ॑न्द्र ते॒ न सु॒षा न सु॒दा उ॒त । नान्यस्त्वच्छू॑र वा॒घत॑: ॥४॥
नकी॒मिन्द्रो॒ निक॑र्तवे॒ न श॒क्रः परि॑शक्तवे । विश्वं॑ शृणोति॒ पश्य॑ति ॥५॥
स म॒न्युं मर्त्या॑ना॒मद॑ब्धो॒ नि चि॑कीषते । पु॒रा नि॒दश्चि॑कीषते ॥६॥
क्रत्व॒ इत्पू॒र्णमु॒दरं॑ तु॒रस्या॑स्ति विध॒तः । वृ॒त्र॒घ्नः सो॑म॒पाव्न॑: ॥७॥
त्वे वसू॑नि॒ संग॑ता॒ विश्वा॑ च सोम॒ सौभ॑गा । सु॒दात्वप॑रिह्वृता ॥८॥
त्वामिद्य॑व॒युर्मम॒ कामो॑ ग॒व्युर्हि॑रण्य॒युः । त्वाम॑श्व॒युरेष॑ते ॥९॥
तवेदि॑न्द्रा॒हमा॒शसा॒ हस्ते॒ दात्रं॑ च॒ना द॑दे । दि॒नस्य॑ वा मघव॒न्त्सम्भृ॑तस्य वा पू॒र्धि यव॑स्य का॒शिना॑ ॥१०॥
पु॒रो॒ळाशं॑ नो॒ अन्ध॑स॒ इन्द्र॑ स॒हस्र॒मा भ॑र । श॒ता च॑ शूर॒ गोना॑म् ॥१॥
आ नो॑ भर॒ व्यञ्ज॑नं॒ गामश्व॑म॒भ्यञ्ज॑नम् । सचा॑ म॒ना हि॑र॒ण्यया॑ ॥२॥
उ॒त न॑: कर्ण॒शोभ॑ना पु॒रूणि॑ धृष्ण॒वा भ॑र । त्वं हि शृ॑ण्वि॒षे व॑सो ॥३॥
नकीं॑ वृधी॒क इ॑न्द्र ते॒ न सु॒षा न सु॒दा उ॒त । नान्यस्त्वच्छू॑र वा॒घत॑: ॥४॥
नकी॒मिन्द्रो॒ निक॑र्तवे॒ न श॒क्रः परि॑शक्तवे । विश्वं॑ शृणोति॒ पश्य॑ति ॥५॥
स म॒न्युं मर्त्या॑ना॒मद॑ब्धो॒ नि चि॑कीषते । पु॒रा नि॒दश्चि॑कीषते ॥६॥
क्रत्व॒ इत्पू॒र्णमु॒दरं॑ तु॒रस्या॑स्ति विध॒तः । वृ॒त्र॒घ्नः सो॑म॒पाव्न॑: ॥७॥
त्वे वसू॑नि॒ संग॑ता॒ विश्वा॑ च सोम॒ सौभ॑गा । सु॒दात्वप॑रिह्वृता ॥८॥
त्वामिद्य॑व॒युर्मम॒ कामो॑ ग॒व्युर्हि॑रण्य॒युः । त्वाम॑श्व॒युरेष॑ते ॥९॥
तवेदि॑न्द्रा॒हमा॒शसा॒ हस्ते॒ दात्रं॑ च॒ना द॑दे । दि॒नस्य॑ वा मघव॒न्त्सम्भृ॑तस्य वा पू॒र्धि यव॑स्य का॒शिना॑ ॥१०॥