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SELECT SUKTA OF MANDALA 08
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Rigveda – Shakala Samhita – Mandala 08 Sukta 055
A
A+
५ कृश: काण्व:। इन्द्र:, प्रस्कण्वश्च । गायत्री , ३, ५ अनुष्टुप् ।
भूरीदिन्द्र॑स्य वी॒र्यं१ व्यख्य॑म॒भ्याय॑ति । राध॑स्ते दस्यवे वृक ॥१॥
श॒तं श्वे॒तास॑ उ॒क्षणो॑ दि॒वि तारो॒ न रो॑चन्ते । म॒ह्ना दिवं॒ न त॑स्तभुः ॥२॥
श॒तं वे॒णूञ्छ॒तं शुन॑: श॒तं चर्मा॑णि म्ला॒तानि॑ । श॒तं मे॑ बल्बजस्तु॒का अरु॑षीणां॒ चतु॑:शतम् ॥३॥
सु॒दे॒वाः स्थ॑ काण्वायना॒ वयो॑वयो विच॒रन्त॑: । अश्वा॑सो॒ न च॑ङ्क्रमत ॥४॥
आदित्सा॒प्तस्य॑ चर्किर॒न्नानू॑नस्य॒ महि॒ श्रव॑: । श्यावी॑रतिध्व॒सन्प॒थश्चक्षु॑षा च॒न सं॒नशे॑ ॥५॥
भूरीदिन्द्र॑स्य वी॒र्यं१ व्यख्य॑म॒भ्याय॑ति । राध॑स्ते दस्यवे वृक ॥१॥
श॒तं श्वे॒तास॑ उ॒क्षणो॑ दि॒वि तारो॒ न रो॑चन्ते । म॒ह्ना दिवं॒ न त॑स्तभुः ॥२॥
श॒तं वे॒णूञ्छ॒तं शुन॑: श॒तं चर्मा॑णि म्ला॒तानि॑ । श॒तं मे॑ बल्बजस्तु॒का अरु॑षीणां॒ चतु॑:शतम् ॥३॥
सु॒दे॒वाः स्थ॑ काण्वायना॒ वयो॑वयो विच॒रन्त॑: । अश्वा॑सो॒ न च॑ङ्क्रमत ॥४॥
आदित्सा॒प्तस्य॑ चर्किर॒न्नानू॑नस्य॒ महि॒ श्रव॑: । श्यावी॑रतिध्व॒सन्प॒थश्चक्षु॑षा च॒न सं॒नशे॑ ॥५॥