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Atharvaveda Shaunaka Samhita – Kanda 07 Sukta 083
By Dr. Sachchidanand Pathak, U.P. Sanskrit Sansthan, Lucknow, India.
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पाशमोचनम्।
१-४ शुनःशेपः। वरुणः। अनुष्टुप्, २ पथ्यापङ्क्तिः, ३ त्रिष्टुप्, ४ बृहतीगर्भा त्रिष्टुप्।
अ॒प्सु ते॑ राजन् वरुण गृ॒हो हि॑र॒ण्ययो॑ मि॒थः ।
ततो॑ धृ॒तव्र॑तो॒ राजा॒ सर्वा॒ धामा॑नि मुञ्चतु ॥१॥
धाम्नो॑धाम्नो राजन्नि॒तो व॑रुण मुञ्च नः ।
यदापो॑ अ॒घ्न्या इति॒ वरु॒णेति॒ यदू॑चि॒म ततो॑ वरुण मुञ्च नः ॥२॥
उदु॑त्त॒मं व॑रुण॒ पाश॑म॒स्मदवा॑ध॒मं वि म॑ध्य॒मं श्र॑थाय ।
अधा॑ व॒यमा॑दित्य व्र॒ते तवाना॑गसो॒ अदि॑तये स्याम ॥३॥
प्रास्मत् पाशा॑न् वरुण मुञ्च॒ सर्वा॒न् य उ॑त्त॒मा अ॑ध॒मा वा॑रु॒णा ये ।
दु॒ष्वप्न्यं॑ दुरि॒तं नि ष्वा॒स्मदथ॑ गच्छेम सुकृ॒तस्य॑ लो॒कम्॥४॥