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Atharvaveda Shaunaka Samhita – Kanda 07 Sukta 073
By Dr. Sachchidanand Pathak, U.P. Sanskrit Sansthan, Lucknow, India.
घर्मः।
१-११ अथर्वा। घर्मः, अश्विनौ। त्रिष्टुप्, १, ४, ६ जगती, २ पथ्याबृहती।
समि॑द्धो अ॒ग्निर्वृ॑षणा र॒थी दि॒वस्त॒प्तो घ॒र्मो दु॑ह्यते वामि॒षे मधु॑ ।
व॒यं हि वां॑ पुरु॒दमा॑सो अश्विना॒ हवा॑महे सध॒मादे॑षु का॒रवः॑ ॥१॥
समि॑द्धो अ॒ग्निर॑श्विना त॒प्तो वां॑ घ॒र्म आ ग॑तम्।
दु॒ह्यन्ते॑ नू॒नं वृ॑षणे॒ह धे॒नवो॒ दस्रा॒ मद॑न्ति वे॒धसः॑ ॥२॥
स्वाहा॑कृतः॒ शुचि॑र्दे॒वेषु॑ य॒ज्ञो यो अ॒श्विनो॑श्चम॒सो दे॑व॒पानः॑ ।
तमु॒ विश्वे॑ अ॒मृता॑सो जुषा॒णा ग॑न्ध॒र्वस्य॒ प्रत्या॒स्ना रि॑हन्ति ॥३॥
यदु॒स्रिया॒स्वाहु॑तं घृ॒तं पयो॒ऽयं स वा॑मश्विना भा॒ग आ ग॑तम्।
माध्वी॑ धर्तारा विदथस्य सत्पती त॒प्तं घ॒र्मं पि॑बतं रोच॒ने दि॒वः ॥४॥
त॒प्तो वां॑ घ॒र्मो न॑क्षतु॒ स्वहो॑ता॒ प्र वा॑मध्व॒र्युश्च॑रतु॒ पय॑स्वान्।
मधो॑र्दु॒ग्धस्या॑श्विना त॒नाया॑ वी॒तं पा॒तं पय॑स उ॒स्रिया॑याः ॥५॥
उप॑ द्रव॒ पय॑सा गोधुगो॒षमा घ॒र्मे सि॑ञ्च॒ पय॑ उ॒स्रिया॑याः ।
वि नाक॑मख्यत् सवि॒ता वरे॑ण्योऽनुप्र॒याण॑मुषसो॒ वि रा॑जति ॥६॥
उप॑ ह्वये सु॒दुघां॑ धे॒नुमे॒तां सु॒हस्तो॑ गो॒धुगु॒त दो॑हदेनाम्।
श्रेष्ठं॑ स॒वं स॑वि॒ता सा॑विषन्नो॒ऽभीऽद्धो घ॒र्मस्तदु॒ षु प्र वो॑चत्॥७॥
हि॒ङ्कृ॒ण्व॒ती व॑सु॒पत्नी॒ वसू॑नां व॒त्समि॒च्छन्ती॒ मन॑सा॒ न्याग॑न्।
दु॒हाम॒श्विभ्यां॒ पयो॑ अ॒घ्न्येयं सा व॑र्धतां मह॒ते सौभ॑गाय ॥८॥
जुष्टो॒ दमू॑ना॒ अति॑थिर्दुरो॒ण इ॒मं नो॑ य॒ज्ञमुप॑ याहि वि॒द्वान्।
विश्वा॑ अग्ने अभि॒युजो॑ वि॒हत्य॑ शत्रूय॒तामा भ॑रा॒ भोज॑नानि ॥९॥
अग्ने॒ शर्ध॑ मह॒ते सौभ॑गाय॒ तव॑ द्यु॒म्नान्यु॑त्त॒मानि॑ सन्तु ।
सं जा॑स्प॒त्यं सु॒यम॒मा कृ॑णुष्व शत्रूय॒ताम॒भि ति॑ष्ठा॒ महां॑सि ॥१०॥
सू॒य॒व॒साद् भग॑वती॒ हि भू॒या अधा॑ व॒यं भग॑वन्तः स्याम ।
अ॒द्धि तृण॑मघ्न्ये विश्व॒दानीं॒ पिब॑ शु॒द्धमु॑द॒कमा॒चर॑न्ती ॥११॥