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Rigveda – Shakala Samhita – Mandala 05 Sukta 048
A
A+
५ प्रतिभानुरात्रेयः। विश्वे देवाः। जगती।
कदु॑ प्रि॒याय॒ धाम्ने॑ मनामहे॒ स्वक्ष॑त्राय॒ स्वय॑शसे म॒हे व॒यम् ।
आ॒मे॒न्यस्य॒ रज॑सो॒ यद॒भ्र आँ अ॒पो वृ॑णा॒ना वि॑त॒नोति॑ मा॒यिनी॑ ॥१॥
ता अ॑त्नत व॒युनं॑ वी॒रव॑क्षणं समा॒न्या वृ॒तया॒ विश्व॒मा रज॑: ।
अपो॒ अपा॑ची॒रप॑रा॒ अपे॑जते॒ प्र पूर्वा॑भिस्तिरते देव॒युर्जन॑: ॥२॥
आ ग्राव॑भिरह॒न्ये॑भिर॒क्तुभि॒र्वरि॑ष्ठं॒ वज्र॒मा जि॑घर्ति मा॒यिनि॑ ।
श॒तं वा॒ यस्य॑ प्र॒चर॒न् त्स्वे दमे॑ संव॒र्तय॑न्तो॒ वि च॑ वर्तय॒न्नहा॑ ॥३॥
ताम॑स्य री॒तिं प॑र॒शोरि॑व॒ प्रत्यनी॑कमख्यं भु॒जे अ॑स्य॒ वर्प॑सः ।
सचा॒ यदि॑ पितु॒मन्त॑मिव॒ क्षयं॒ रत्नं॒ दधा॑ति॒ भर॑हूतये वि॒शे ॥४॥
स जि॒ह्वया॒ चतु॑रनीक ऋञ्जते॒ चारु॒ वसा॑नो॒ वरु॑णो॒ यत॑न्न॒रिम् ।
न तस्य॑ विद्म पुरुष॒त्वता॑ व॒यं यतो॒ भग॑: सवि॒ता दाति॒ वार्य॑म् ॥५॥
कदु॑ प्रि॒याय॒ धाम्ने॑ मनामहे॒ स्वक्ष॑त्राय॒ स्वय॑शसे म॒हे व॒यम् ।
आ॒मे॒न्यस्य॒ रज॑सो॒ यद॒भ्र आँ अ॒पो वृ॑णा॒ना वि॑त॒नोति॑ मा॒यिनी॑ ॥१॥
ता अ॑त्नत व॒युनं॑ वी॒रव॑क्षणं समा॒न्या वृ॒तया॒ विश्व॒मा रज॑: ।
अपो॒ अपा॑ची॒रप॑रा॒ अपे॑जते॒ प्र पूर्वा॑भिस्तिरते देव॒युर्जन॑: ॥२॥
आ ग्राव॑भिरह॒न्ये॑भिर॒क्तुभि॒र्वरि॑ष्ठं॒ वज्र॒मा जि॑घर्ति मा॒यिनि॑ ।
श॒तं वा॒ यस्य॑ प्र॒चर॒न् त्स्वे दमे॑ संव॒र्तय॑न्तो॒ वि च॑ वर्तय॒न्नहा॑ ॥३॥
ताम॑स्य री॒तिं प॑र॒शोरि॑व॒ प्रत्यनी॑कमख्यं भु॒जे अ॑स्य॒ वर्प॑सः ।
सचा॒ यदि॑ पितु॒मन्त॑मिव॒ क्षयं॒ रत्नं॒ दधा॑ति॒ भर॑हूतये वि॒शे ॥४॥
स जि॒ह्वया॒ चतु॑रनीक ऋञ्जते॒ चारु॒ वसा॑नो॒ वरु॑णो॒ यत॑न्न॒रिम् ।
न तस्य॑ विद्म पुरुष॒त्वता॑ व॒यं यतो॒ भग॑: सवि॒ता दाति॒ वार्य॑म् ॥५॥