SELECT MANDALA
SELECT SUKTA OF MANDALA 08
- 001
- 002
- 003
- 004
- 005
- 006
- 007
- 008
- 009
- 010
- 011
- 012
- 013
- 014
- 015
- 016
- 017
- 018
- 019
- 020
- 021
- 022
- 023
- 024
- 025
- 026
- 027
- 028
- 029
- 030
- 031
- 032
- 033
- 034
- 035
- 036
- 037
- 038
- 039
- 040
- 041
- 042
- 043
- 044
- 045
- 046
- 047
- 048
- 049
- 050
- 051
- 052
- 053
- 054
- 055
- 056
- 057
- 058
- 059
- 060
- 061
- 062
- 063
- 064
- 065
- 067
- 068
- 069
- 070
- 071
- 072
- 073
- 074
- 075
- 076
- 077
- 078
- 079
- 080
- 081
- 082
- 083
- 084
- 085
- 086
- 087
- 088
- 089
- 090
- 091
- 092
- 093
- 094
- 095
- 096
- 097
- 098
- 099
- 100
- 101
- 102
- 103
Rigveda – Shakala Samhita – Mandala 08 Sukta 079
A
A+
९ कृत्नुर्भार्गव: । सोम: ।गायत्री , ९ अनुष्टुप् ।
अ॒यं कृ॒त्नुरगृ॑भीतो विश्व॒जिदु॒द्भिदित्सोम॑: । ऋषि॒र्विप्र॒: काव्ये॑न ॥१॥
अ॒भ्यू॑र्णोति॒ यन्न॒ग्नं भि॒षक्ति॒ विश्वं॒ यत्तु॒रम् । प्रेम॒न्धः ख्य॒न्निः श्रो॒णो भू॑त् ॥२॥
त्वं सो॑म तनू॒कृद्भ्यो॒ द्वेषो॑भ्यो॒ऽन्यकृ॑तेभ्यः । उ॒रु य॒न्तासि॒ वरू॑थम् ॥३॥
त्वं चि॒त्ती तव॒ दक्षै॑र्दि॒व आ पृ॑थि॒व्या ऋ॑जीषिन् । यावी॑र॒घस्य॑ चि॒द्द्वेष॑: ॥४॥
अ॒र्थिनो॒ यन्ति॒ चेदर्थं॒ गच्छा॒निद्द॒दुषो॑ रा॒तिम् । व॒वृ॒ज्युस्तृष्य॑त॒: काम॑म् ॥५॥
वि॒दद्यत्पू॒र्व्यं न॒ष्टमुदी॑मृता॒युमी॑रयत् । प्रेमायु॑स्तारी॒दती॑र्णम् ॥६॥
सु॒शेवो॑ नो मृळ॒याकु॒रदृ॑प्तक्रतुरवा॒तः । भवा॑ नः सोम॒ शं हृ॒दे ॥७॥
मा न॑: सोम॒ सं वी॑विजो॒ मा वि बी॑भिषथा राजन् । मा नो॒ हार्दि॑ त्वि॒षा व॑धीः ॥८॥
अव॒ यत्स्वे स॒धस्थे॑ दे॒वानां॑ दुर्म॒तीरीक्षे॑ । राज॒न्नप॒ द्विष॑: सेध॒ मीढ्वो॒ अप॒ स्रिध॑: सेध ॥९॥
अ॒यं कृ॒त्नुरगृ॑भीतो विश्व॒जिदु॒द्भिदित्सोम॑: । ऋषि॒र्विप्र॒: काव्ये॑न ॥१॥
अ॒भ्यू॑र्णोति॒ यन्न॒ग्नं भि॒षक्ति॒ विश्वं॒ यत्तु॒रम् । प्रेम॒न्धः ख्य॒न्निः श्रो॒णो भू॑त् ॥२॥
त्वं सो॑म तनू॒कृद्भ्यो॒ द्वेषो॑भ्यो॒ऽन्यकृ॑तेभ्यः । उ॒रु य॒न्तासि॒ वरू॑थम् ॥३॥
त्वं चि॒त्ती तव॒ दक्षै॑र्दि॒व आ पृ॑थि॒व्या ऋ॑जीषिन् । यावी॑र॒घस्य॑ चि॒द्द्वेष॑: ॥४॥
अ॒र्थिनो॒ यन्ति॒ चेदर्थं॒ गच्छा॒निद्द॒दुषो॑ रा॒तिम् । व॒वृ॒ज्युस्तृष्य॑त॒: काम॑म् ॥५॥
वि॒दद्यत्पू॒र्व्यं न॒ष्टमुदी॑मृता॒युमी॑रयत् । प्रेमायु॑स्तारी॒दती॑र्णम् ॥६॥
सु॒शेवो॑ नो मृळ॒याकु॒रदृ॑प्तक्रतुरवा॒तः । भवा॑ नः सोम॒ शं हृ॒दे ॥७॥
मा न॑: सोम॒ सं वी॑विजो॒ मा वि बी॑भिषथा राजन् । मा नो॒ हार्दि॑ त्वि॒षा व॑धीः ॥८॥
अव॒ यत्स्वे स॒धस्थे॑ दे॒वानां॑ दुर्म॒तीरीक्षे॑ । राज॒न्नप॒ द्विष॑: सेध॒ मीढ्वो॒ अप॒ स्रिध॑: सेध ॥९॥