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Rigveda – Shakala Samhita – Mandala 05 Sukta 065
A
A+
६ रातहव्य आत्रेयः। मित्रावरुणौ। अनुष्टुप्, ६ पङ्क्तिः।
यश्चि॒केत॒ स सु॒क्रतु॑र्देव॒त्रा स ब्र॑वीतु नः । वरु॑णो॒ यस्य॑ दर्श॒तो मि॒त्रो वा॒ वन॑ते॒ गिर॑: ॥१॥
ता हि श्रेष्ठ॑वर्चसा॒ राजा॑ना दीर्घ॒श्रुत्त॑मा । ता सत्प॑ती ऋता॒वृध॑ ऋ॒तावा॑ना॒ जने॑जने ॥२॥
ता वा॑मिया॒नोऽव॑से॒ पूर्वा॒ उप॑ ब्रुवे॒ सचा॑ । स्वश्वा॑स॒: सु चे॒तुना॒ वाजाँ॑ अ॒भि प्र दा॒वने॑ ॥३॥
मि॒त्रो अं॒होश्चि॒दादु॒रु क्षया॑य गा॒तुं व॑नते । मि॒त्रस्य॒ हि प्र॒तूर्व॑तः सुम॒तिरस्ति॑ विध॒तः ॥४॥
व॒यं मि॒त्रस्याव॑सि॒ स्याम॑ स॒प्रथ॑स्तमे । अ॒ने॒हस॒स्त्वोत॑यः स॒त्रा वरु॑णशेषसः ॥५॥
यु॒वं मि॑त्रे॒मं जनं॒ यत॑थ॒: सं च॑ नयथः ।
मा म॒घोन॒: परि॑ ख्यतं॒ मो अ॒स्माक॒मृषी॑णां गोपी॒थे न॑ उरुष्यतम् ॥६॥
यश्चि॒केत॒ स सु॒क्रतु॑र्देव॒त्रा स ब्र॑वीतु नः । वरु॑णो॒ यस्य॑ दर्श॒तो मि॒त्रो वा॒ वन॑ते॒ गिर॑: ॥१॥
ता हि श्रेष्ठ॑वर्चसा॒ राजा॑ना दीर्घ॒श्रुत्त॑मा । ता सत्प॑ती ऋता॒वृध॑ ऋ॒तावा॑ना॒ जने॑जने ॥२॥
ता वा॑मिया॒नोऽव॑से॒ पूर्वा॒ उप॑ ब्रुवे॒ सचा॑ । स्वश्वा॑स॒: सु चे॒तुना॒ वाजाँ॑ अ॒भि प्र दा॒वने॑ ॥३॥
मि॒त्रो अं॒होश्चि॒दादु॒रु क्षया॑य गा॒तुं व॑नते । मि॒त्रस्य॒ हि प्र॒तूर्व॑तः सुम॒तिरस्ति॑ विध॒तः ॥४॥
व॒यं मि॒त्रस्याव॑सि॒ स्याम॑ स॒प्रथ॑स्तमे । अ॒ने॒हस॒स्त्वोत॑यः स॒त्रा वरु॑णशेषसः ॥५॥
यु॒वं मि॑त्रे॒मं जनं॒ यत॑थ॒: सं च॑ नयथः ।
मा म॒घोन॒: परि॑ ख्यतं॒ मो अ॒स्माक॒मृषी॑णां गोपी॒थे न॑ उरुष्यतम् ॥६॥