SELECT MANDALA
SELECT SUKTA OF MANDALA 08
- 001
- 002
- 003
- 004
- 005
- 006
- 007
- 008
- 009
- 010
- 011
- 012
- 013
- 014
- 015
- 016
- 017
- 018
- 019
- 020
- 021
- 022
- 023
- 024
- 025
- 026
- 027
- 028
- 029
- 030
- 031
- 032
- 033
- 034
- 035
- 036
- 037
- 038
- 039
- 040
- 041
- 042
- 043
- 044
- 045
- 046
- 047
- 048
- 049
- 050
- 051
- 052
- 053
- 054
- 055
- 056
- 057
- 058
- 059
- 060
- 061
- 062
- 063
- 064
- 065
- 067
- 068
- 069
- 070
- 071
- 072
- 073
- 074
- 075
- 076
- 077
- 078
- 079
- 080
- 081
- 082
- 083
- 084
- 085
- 086
- 087
- 088
- 089
- 090
- 091
- 092
- 093
- 094
- 095
- 096
- 097
- 098
- 099
- 100
- 101
- 102
- 103
Rigveda – Shakala Samhita – Mandala 08 Sukta 057
A
A+
४ मेध्य: काण्व:। अश्विनौ । त्रिष्टुप् ।
यु॒वं दे॑वा॒ क्रतु॑ना पू॒र्व्येण॑ यु॒क्ता रथे॑न तवि॒षं य॑जत्रा ।
आग॑च्छतं नासत्या॒ शची॑भिरि॒दं तृ॒तीयं॒ सव॑नं पिबाथः ॥१॥
यु॒वां दे॒वास्त्रय॑ एकाद॒शास॑: स॒त्याः स॒त्यस्य॑ ददृशे पु॒रस्ता॑त् ।
अ॒स्माकं॑ य॒ज्ञं सव॑नं जुषा॒णा पा॒तं सोम॑मश्विना॒ दीद्य॑ग्नी ॥२॥
प॒नाय्यं॒ तद॑श्विना कृ॒तं वां॑ वृष॒भो दि॒वो रज॑सः पृथि॒व्याः ।
स॒हस्रं॒ शंसा॑ उ॒त ये गवि॑ष्टौ॒ सर्वाँ॒ इत्ताँ उप॑ याता॒ पिब॑ध्यै ॥३॥
अ॒यं वां॑ भा॒गो निहि॑तो यजत्रे॒मा गिरो॑ नास॒त्योप॑ यातम् ।
पिब॑तं॒ सोमं॒ मधु॑मन्तम॒स्मे प्र दा॒श्वांस॑मवतं॒ शची॑भिः ॥४॥
यु॒वं दे॑वा॒ क्रतु॑ना पू॒र्व्येण॑ यु॒क्ता रथे॑न तवि॒षं य॑जत्रा ।
आग॑च्छतं नासत्या॒ शची॑भिरि॒दं तृ॒तीयं॒ सव॑नं पिबाथः ॥१॥
यु॒वां दे॒वास्त्रय॑ एकाद॒शास॑: स॒त्याः स॒त्यस्य॑ ददृशे पु॒रस्ता॑त् ।
अ॒स्माकं॑ य॒ज्ञं सव॑नं जुषा॒णा पा॒तं सोम॑मश्विना॒ दीद्य॑ग्नी ॥२॥
प॒नाय्यं॒ तद॑श्विना कृ॒तं वां॑ वृष॒भो दि॒वो रज॑सः पृथि॒व्याः ।
स॒हस्रं॒ शंसा॑ उ॒त ये गवि॑ष्टौ॒ सर्वाँ॒ इत्ताँ उप॑ याता॒ पिब॑ध्यै ॥३॥
अ॒यं वां॑ भा॒गो निहि॑तो यजत्रे॒मा गिरो॑ नास॒त्योप॑ यातम् ।
पिब॑तं॒ सोमं॒ मधु॑मन्तम॒स्मे प्र दा॒श्वांस॑मवतं॒ शची॑भिः ॥४॥