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SELECT SUKTA OF MANDALA 07
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Rigveda – Shakala Samhita – Mandala 07 Sukta 045
A
A+
४ मैत्रावरुणिर्वसिष्ठ:। सविता । त्रिष्टुप् ।
आ दे॒वो या॑तु सवि॒ता सु॒रत्नो॑ऽन्तरिक्ष॒प्रा वह॑मानो॒ अश्वै॑: ।
हस्ते॒ दधा॑नो॒ नर्या॑ पु॒रूणि॑ निवे॒शय॑ञ्च प्रसु॒वञ्च॒ भूम॑ ॥१॥
उद॑स्य बा॒हू शि॑थि॒रा बृ॒हन्ता॑ हिर॒ण्यया॑ दि॒वो अन्ताँ॑ अनष्टाम् ।
नू॒नं सो अ॑स्य महि॒मा प॑निष्ट॒ सूर॑श्चिदस्मा॒ अनु॑ दादप॒स्याम् ॥२॥
स घा॑ नो दे॒वः स॑वि॒ता स॒हावा ऽऽसा॑विष॒द्वसु॑पति॒र्वसू॑नि ।
वि॒श्रय॑माणो अ॒मति॑मुरू॒चीं म॑र्त॒भोज॑न॒मध॑ रासते नः ॥३॥
इ॒मा गिर॑: सवि॒तारं॑ सुजि॒ह्वं पू॒र्णग॑भस्तिमीळते सुपा॒णिम् ।
चि॒त्रं वयो॑ बृ॒हद॒स्मे द॑धातु यू॒यं पा॑त स्व॒स्तिभि॒: सदा॑ नः ॥४॥
आ दे॒वो या॑तु सवि॒ता सु॒रत्नो॑ऽन्तरिक्ष॒प्रा वह॑मानो॒ अश्वै॑: ।
हस्ते॒ दधा॑नो॒ नर्या॑ पु॒रूणि॑ निवे॒शय॑ञ्च प्रसु॒वञ्च॒ भूम॑ ॥१॥
उद॑स्य बा॒हू शि॑थि॒रा बृ॒हन्ता॑ हिर॒ण्यया॑ दि॒वो अन्ताँ॑ अनष्टाम् ।
नू॒नं सो अ॑स्य महि॒मा प॑निष्ट॒ सूर॑श्चिदस्मा॒ अनु॑ दादप॒स्याम् ॥२॥
स घा॑ नो दे॒वः स॑वि॒ता स॒हावा ऽऽसा॑विष॒द्वसु॑पति॒र्वसू॑नि ।
वि॒श्रय॑माणो अ॒मति॑मुरू॒चीं म॑र्त॒भोज॑न॒मध॑ रासते नः ॥३॥
इ॒मा गिर॑: सवि॒तारं॑ सुजि॒ह्वं पू॒र्णग॑भस्तिमीळते सुपा॒णिम् ।
चि॒त्रं वयो॑ बृ॒हद॒स्मे द॑धातु यू॒यं पा॑त स्व॒स्तिभि॒: सदा॑ नः ॥४॥