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Rigveda – Shakala Samhita – Mandala 07 Sukta 025
A
A+
६ मैत्रावरुणिर्वसिष्ठ:। इन्द्र: । त्रिष्टुप् ।
आ ते॑ म॒ह इ॑न्द्रो॒त्यु॑ग्र॒ सम॑न्यवो॒ यत्स॒मर॑न्त॒ सेना॑: ।
पता॑ति दि॒द्युन्नर्य॑स्य बा॒ह्वोर्मा ते॒ मनो॑ विष्व॒द्र्य१ग्वि चा॑रीत् ॥१॥
नि दु॒र्ग इ॑न्द्र श्नथिह्य॒मित्रा॑न॒भि ये नो॒ मर्ता॑सो अ॒मन्ति॑ ।
आ॒रे तं शंसं॑ कृणुहि निनि॒त्सोरा नो॑ भर सं॒भर॑णं॒ वसू॑नाम् ॥२॥
श॒तं ते॑ शिप्रिन्नू॒तय॑: सु॒दासे॑ स॒हस्रं॒ शंसा॑ उ॒त रा॒तिर॑स्तु ।
ज॒हि वध॑र्व॒नुषो॒ मर्त्य॑स्या॒ऽस्मे द्यु॒म्नमधि॒ रत्नं॑ च धेहि ॥३॥
त्वाव॑तो॒ ही॑न्द्र॒ क्रत्वे॒ अस्मि॒ त्वाव॑तोऽवि॒तुः शू॑र रा॒तौ ।
विश्वेदहा॑नि तविषीव उग्रँ॒ ओक॑: कृणुष्व हरिवो॒ न म॑र्धीः ॥४॥
कुत्सा॑ ए॒ते हर्य॑श्वाय शू॒षमिन्द्रे॒ सहो॑ दे॒वजू॑तमिया॒नाः ।
स॒त्रा कृ॑धि सु॒हना॑ शूर वृ॒त्रा व॒यं तरु॑त्राः सनुयाम॒ वाज॑म् ॥५॥
ए॒वा न॑ इन्द्र॒ वार्य॑स्य पूर्धि॒ प्र ते॑ म॒हीं सु॑म॒तिं वे॑विदाम ।
इषं॑ पिन्व म॒घव॑द्भ्यः सु॒वीरां॑ यू॒यं पा॑त स्व॒स्तिभि॒: सदा॑ नः ॥६॥
आ ते॑ म॒ह इ॑न्द्रो॒त्यु॑ग्र॒ सम॑न्यवो॒ यत्स॒मर॑न्त॒ सेना॑: ।
पता॑ति दि॒द्युन्नर्य॑स्य बा॒ह्वोर्मा ते॒ मनो॑ विष्व॒द्र्य१ग्वि चा॑रीत् ॥१॥
नि दु॒र्ग इ॑न्द्र श्नथिह्य॒मित्रा॑न॒भि ये नो॒ मर्ता॑सो अ॒मन्ति॑ ।
आ॒रे तं शंसं॑ कृणुहि निनि॒त्सोरा नो॑ भर सं॒भर॑णं॒ वसू॑नाम् ॥२॥
श॒तं ते॑ शिप्रिन्नू॒तय॑: सु॒दासे॑ स॒हस्रं॒ शंसा॑ उ॒त रा॒तिर॑स्तु ।
ज॒हि वध॑र्व॒नुषो॒ मर्त्य॑स्या॒ऽस्मे द्यु॒म्नमधि॒ रत्नं॑ च धेहि ॥३॥
त्वाव॑तो॒ ही॑न्द्र॒ क्रत्वे॒ अस्मि॒ त्वाव॑तोऽवि॒तुः शू॑र रा॒तौ ।
विश्वेदहा॑नि तविषीव उग्रँ॒ ओक॑: कृणुष्व हरिवो॒ न म॑र्धीः ॥४॥
कुत्सा॑ ए॒ते हर्य॑श्वाय शू॒षमिन्द्रे॒ सहो॑ दे॒वजू॑तमिया॒नाः ।
स॒त्रा कृ॑धि सु॒हना॑ शूर वृ॒त्रा व॒यं तरु॑त्राः सनुयाम॒ वाज॑म् ॥५॥
ए॒वा न॑ इन्द्र॒ वार्य॑स्य पूर्धि॒ प्र ते॑ म॒हीं सु॑म॒तिं वे॑विदाम ।
इषं॑ पिन्व म॒घव॑द्भ्यः सु॒वीरां॑ यू॒यं पा॑त स्व॒स्तिभि॒: सदा॑ नः ॥६॥