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Rigveda – Shakala Samhita – Mandala 07 Sukta 009
A
A+
६ मैत्रावरुणिर्वसिष्ठ:। अग्नि: । त्रिष्टुप् ।
अबो॑धि जा॒र उ॒षसा॑मु॒पस्था॒द्धोता॑ म॒न्द्रः क॒वित॑मः पाव॒कः ।
दधा॑ति के॒तुमु॒भय॑स्य ज॒न्तोर्ह॒व्या दे॒वेषु॒ द्रवि॑णं सु॒कृत्सु॑ ॥१॥
स सु॒क्रतु॒र्यो वि दुर॑: पणी॒नां पु॑ना॒नो अ॒र्कं पु॑रु॒भोज॑सं नः ।
होता॑ म॒न्द्रो वि॒शां दमू॑नास्ति॒रस्तमो॑ ददृशे रा॒म्याणा॑म् ॥२॥
अमू॑रः क॒विरदि॑तिर्वि॒वस्वा॑न्त्सुसं॒सन्मि॒त्रो अति॑थिः शि॒वो न॑: ।
चि॒त्रभा॑नुरु॒षसां॑ भा॒त्यग्रे॒ऽपां गर्भ॑: प्र॒स्व१ आ वि॑वेश ॥३॥
ई॒ळेन्यो॑ वो॒ मनु॑षो यु॒गेषु॑ समन॒गा अ॑शुचज्जा॒तवे॑दाः ।
सु॒सं॒दृशा॑ भा॒नुना॒ यो वि॒भाति॒ प्रति॒ गाव॑: समिधा॒नं बु॑धन्त ॥४॥
अग्ने॑ या॒हि दू॒त्यं१ मा रि॑षण्यो दे॒वाँ अच्छा॑ ब्रह्म॒कृता॑ ग॒णेन॑ ।
सर॑स्वतीं म॒रुतो॑ अ॒श्विना॒पो यक्षि॑ दे॒वान्र॑त्न॒धेया॑य॒ विश्वा॑न् ॥५॥
त्वाम॑ग्ने समिधा॒नो वसि॑ष्ठो॒ जरू॑थं ह॒न्यक्षि॑ रा॒ये पुरं॑धिम् ।
पु॒रु॒णी॒था जा॑तवेदो जरस्व यू॒यं पा॑त स्व॒स्तिभि॒: सदा॑ नः ॥६॥
अबो॑धि जा॒र उ॒षसा॑मु॒पस्था॒द्धोता॑ म॒न्द्रः क॒वित॑मः पाव॒कः ।
दधा॑ति के॒तुमु॒भय॑स्य ज॒न्तोर्ह॒व्या दे॒वेषु॒ द्रवि॑णं सु॒कृत्सु॑ ॥१॥
स सु॒क्रतु॒र्यो वि दुर॑: पणी॒नां पु॑ना॒नो अ॒र्कं पु॑रु॒भोज॑सं नः ।
होता॑ म॒न्द्रो वि॒शां दमू॑नास्ति॒रस्तमो॑ ददृशे रा॒म्याणा॑म् ॥२॥
अमू॑रः क॒विरदि॑तिर्वि॒वस्वा॑न्त्सुसं॒सन्मि॒त्रो अति॑थिः शि॒वो न॑: ।
चि॒त्रभा॑नुरु॒षसां॑ भा॒त्यग्रे॒ऽपां गर्भ॑: प्र॒स्व१ आ वि॑वेश ॥३॥
ई॒ळेन्यो॑ वो॒ मनु॑षो यु॒गेषु॑ समन॒गा अ॑शुचज्जा॒तवे॑दाः ।
सु॒सं॒दृशा॑ भा॒नुना॒ यो वि॒भाति॒ प्रति॒ गाव॑: समिधा॒नं बु॑धन्त ॥४॥
अग्ने॑ या॒हि दू॒त्यं१ मा रि॑षण्यो दे॒वाँ अच्छा॑ ब्रह्म॒कृता॑ ग॒णेन॑ ।
सर॑स्वतीं म॒रुतो॑ अ॒श्विना॒पो यक्षि॑ दे॒वान्र॑त्न॒धेया॑य॒ विश्वा॑न् ॥५॥
त्वाम॑ग्ने समिधा॒नो वसि॑ष्ठो॒ जरू॑थं ह॒न्यक्षि॑ रा॒ये पुरं॑धिम् ।
पु॒रु॒णी॒था जा॑तवेदो जरस्व यू॒यं पा॑त स्व॒स्तिभि॒: सदा॑ नः ॥६॥